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बेगुनाहों की मौत का बदला लेगा हिन्दुस्तान

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– बहादुर सिंह चौहान (प्रधान संपादक)

जम्मू कश्मीर में पहलगाम की बैसरन घाटी में कल हुए आतंकी हमले ने 27 बेगुनाहों की जाने ले ली। 2019 के पुलवामा अटैक के बाद ये सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ है।
हमला इतना कायरतापूर्ण था कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस हमले ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। देश में हर जगह इस हमले की कड़ी निंदा की जा रही है और साथ ही हर भारतीय के मन में क्रोध और बदले की भावना भी धधक रही है। हिन्दुस्तान के ताज कश्मीर को एक बार फिर से निशाना बनाया गया है और इस बार निशाने पर बेगुनाह पर्यटक थे। इन पर्यटकों में ना केवल हिन्दुस्तान के बल्कि विदेशी पर्यटक भी थे। इससे ये साफ जाहिर होता है कि आतंकियों ने पूरे विश्व पर चोट की है। हिन्दुस्तान को एक बार फिर से सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाने की आवश्यकता है। बेगुनाहों की जान लेने वाले और धर्म के नाम पर जहर उगलने वालों का हश्र बुरा होना चाहिए।
‘हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा है जो पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहा है। इन दिनों कश्मीर में 90 प्रतिशत आतंकी पाकिस्तान से आ रहे हैं। पहले लोकल मिलिटेंट होते थे, वे टूरिस्ट पर हमला नहीं करते थे। उन्हें पता था कि लोकल लोगों का बिजनेस ठप हो जाता है। पाकिस्तानी आतंकियों और पाकिस्तान को कश्मीर के लोगों से कोई हमदर्दी नहीं है, लेकिन फिर भी वे दिखावा करते है कि वे केवल हिन्दुओं को निशाना बना रहे है जबकि उनके इस हमले में कई बार दूसरे धर्माे के लोगों की जाने भी गई है। इस बार का हमला दो तरफा नजर आ रहा है। इनका मकसद साफ है कि वे घाटी में किसी भी हिन्दु को नहीं देखना चाहते है और एक बाद फिर खुद का नेटवर्क वहां स्थापित करने की कोशिश में लगे है। लेकिन कश्मीर अब बदल चुका है। वहां के लोग अब शिक्षा और व्यापार की राह पर चल रह है। कश्मीर के लोग अमन और शांति चाहते है। इस हमले से कश्मीर को पर्यटन से जो आर्थिक फायदा होने वाला था वो अब मिट्टी में मिल गया है।
पिछले काफी समय से हिन्दुस्तान में आतंकी घटनाएं थम गई थी लेकिन कल हुए हमले ने एक बार फिर से यह सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या हम अपने ही देश में सुरक्षित है या नहीं! एक इंसान जो अपने परिवार के साथ अपने ही देश के पर्यटक स्थल पर घूमने के लिए जाता है और फिर वह वापिस नहीं आ पाता है। इस बात के क्या मायने होते है! क्या इस हमले से हमे डर जाना चाहिए या इसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। क्या अब हमें अपने ही देश में कहीं जाने के लिए पहले इतना सोचना पड़ेगा कि हम सुरक्षित रहेंगे या नहीं!
जब तक इस हमले का बदला नहीं लिया जाएगा तब तक हर भारतीय के मन में खौफ का मंजर रहेगा और असुरक्षा की भावना भी रहेगी। जो इस हमले में बच गए वो खैरियत मना रहे है और जिनकी जान चली गई और जो घायल हो गए है वो खुद को कोस रहे होंगे कि काश हम वहां नहीं जाते। जिनके साथ ये हादसा हुआ है वे और उनका परिवार इस खौफनाक मजंर को पूरी जिंदगी याद रखेंगे और ये बुरी यादे पूरी जिंदगी उनके साथ रहेगी। आतंकियों का मकसद है कि वे हर भारतीयों में डर की भावना चाहते है। लेकिन उनका ये मकसद कभी कामयाब नहीं हो सकता है। हिन्दुस्तान का हर नागरिक अपने देश के लिए मर मिटने तक तैयार है।
कल के हमले में आतंकियों ने ना केवल बेगुनाहों की जाने ली बल्कि उनके धर्म के बारे में पूछकर दो धर्मों के लोगों को एक -दूसरे के प्रति नफरत घोलने का भी काम किया है। लेकिन हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। क्योंकि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता है। क्योंकि जून 2018 में भारतीय सेना के एक जवान औरंगजेब जब ईद की छुट्टिया मनाने के लिए अपने घर पर जा रहे थे तब वे निहत्थे थे और आतंकियों ने उन्हें घेर कर उनका कत्ल कर दिया था। औरंगजेब एक जांबाज भारतीय सैनिक थे और उन्होंने देश के लिए हंसते हंसते अपनी जान न्यौछावर कर दी थी तब उन कायर आतंकियों ने उनसे ना तो कलमा पूछा और ना ही उनका धर्म, क्योंकि उन्हें औरंगजेब के बारे में पूरी जानकारी थी। औरंगजेब ने घाटी में कई आतंकियों को मौत के घाट उतारा था और आतंकियों में उनके नाम का खौफ था।
कल के हमले में बेगुनाहों से उनका धर्म पूछने का उनका मकसद सिर्फ भारतीयों में धर्म को लेकर जहर घोलना ही था। लेकिन हम उनके इस मकसद को कभी कामयाब नहीं होने देंगे और आतंक की इस लड़ाई में एक जुट होकर बराबर लड़ेगें।

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