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वायु प्रदूषण का लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा गंभीर प्रभाव

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  • जोधपुर आईआईटी ने मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक स्रोतों को बताया

मधुहीर राजस्थान

जोधपुर। वायु प्रदूषण एक गंभीर वैश्विक चुनौती बनी हुई है, जिसका दुनियाभर में लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इसको लोकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर की सह आचार्य डॉ. दीपिका भट्टू ने नेचर कम्युनिकेशंस में एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित किया है, जिसमें उत्तर भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पार्टिकुलेट मैटर के स्रोतों और संरचना पर प्रकाश डाला गया है।
डॉ. दीपिका भट्टू ने अपने अध्ययन में तीन महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रश्नों पर शोध किया गया जो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत डेटा-आधारित, प्रभावी शमन रणनीति तैयार करने में भारतीय नीति निर्माताओं के लिए विचारणीय हैं। इसमें प्रथम सूक्ष्म पीएम (पीएम 2.5) स्रोत की पहचान और उनका पूर्ण योगदान है। साथ ही उनके स्थानीय और क्षेत्रीय भौगोलिक उद्गम के बीच अभूतपूर्व स्पष्टता है। इसके साथ ही सीधे उत्सर्जित पीएम और वायुमंडल में बनने वाले पीएम के बीच एक व्यापक और स्पष्ट अंतर को दर्शाया गया है। यह पहली बार है जब बड़े स्थानिक और लौकिक पैमाने पर ऐसा अंतर स्पष्ट रूप से किया गया है। अध्ययन क्षेत्र के भीतर स्थानीय और क्षेत्रीय स्रोतों के साथ इसकी ऑक्सीडेटिव क्षमता को सहसंबंधित करके पीएम की हानिकारकता का निर्धारण किया गया है।
डॉ. दीपिका भट्टू ने दिल्ली के अंदर और बाहर पांच इंडो-गंगा मैदानी स्थलों पर अध्ययन किया और पाया कि पूरे क्षेत्र में समान रूप से उच्च पीएम सांद्रता मौजूद है, लेकिन स्थानीय उत्सर्जन स्रोतों और निर्माण प्रक्रियाओं के कारण रासायनिक संरचना में काफी भिन्नता है, जो पीएम प्रदूषण पर हावी है। दिल्ली के अंदर अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल सीधे यातायात निकास, आवासीय हीटिंग और वायुमंडल में उत्पादित जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के ऑक्सीकरण उत्पादों से उत्पन्न होते हैं, जो पीएम प्रदूषण पर हावी हैं। इसके विपरीत दिल्ली के बाहर, अमोनियम सल्फेट और अमोनियम नाइट्रेट, साथ ही बायोमास जलने वाले वाष्पों से द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल, प्रमुख योगदानकर्ता हैं। हालांकि स्थान चाहे कोई भी हो, अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बायोमास और जीवाश्म ईंधन के अधूरे दहन से कार्बनिक एरोसोल, जिसमें यातायात उत्सर्जन भी शामिल है जो पीएम ऑक्सीडेटिव क्षमता में प्रमुख योगदानकर्ता हैं, वह इस क्षेत्र में पीएम से जुड़े स्वास्थ्य प्रभावों को बढ़ाता है।
भारतीय पीएम 2.5 की ऑक्सीडेटिव क्षमता की तुलना करने पर चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं। भारतीय पीएम की ऑक्सीडेटिव क्षमता चीनी और यूरोपीय शहरों से पांच गुना तक अधिक है, जो इसे वैश्विक स्तर पर मौजूद सबसे अधिक ऑक्सीडेटिव क्षमता में से एक बनाती है। डॉ. दीपिका भट्टू ने जोर देकर कहा कि भारत के वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों और हितधारकों के बीच सहयोग के साथ सामाजिक परिवर्तन की भी आवश्यकता है, खासकर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में। इसके लिए ठोस टिकाऊ प्रयासों की आवश्यकता है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दें, दहन दक्षता में सुधार करें और मुख्य रूप से पुराने, ओवरलोड और अक्षम वाहनों के बेड़े से परिवहन से उत्सर्जन को कम करें और अनधिकृत जुगाड़ वाहनों को हटा दें।

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