मधुहीर राजस्थान
जोधपुर। राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि बीमाधारी दावा राशि का पूर्ण एवम अंतिम भुगतान प्राप्त करने के बाद भी बकाया दावा राशि प्राप्त करने का हकदार है और सर्वे रपट अंतिम बाण नहीं है और अग्नि बीमा पॉलिसी में अवमूल्य कटौती का कोई प्रावधान नहीं है। आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र कच्छवाहा और न्यायिक सदस्य निर्मल सिंह मेड़तवाल ने परिवाद मंजूर करते हुए युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी पर एक लाख रुपए हरजाना लगाते हुए दावा राशि 68 लाख 92 हजार 859 रुपए मय 11 दिसंबर 2014 से 6 फीसदी ब्याज और परिवाद व्यय 21 हजार रूपए 45 दिवस में अदा करने के आदेश दिए,अन्यथा 9 फीसदी ब्याज दर से भुगतान किया जाएगा। सेठिया हैंडीक्राफ्ट्स के प्रबंध निदेशक नीरज सेठिया ने अधिवक्ता अनिल भंडारी के माध्यम से परिवाद पेश कर कहा कि 10 मार्च 2012 को उनके बीमित परिसर में भीषण आग लग जाने से उन्हें लगभग ढाई करोड़ रूपए का नुकसान हो गया।
उन्होंने बीमा कंपनी से अनुरोध किया कि उन्हें दावा राशि का 75 फीसदी भुगतान अग्रिम तौर पर कर दिया जाएं लेकिन बीमा कंपनी ने इसे अनसुना कर दिया। अक्टूबर 2013 में बीमा कंपनी के सर्वेयर ने परिवादी को मुंबई बुलाकर दबाव बनाया कि वे पूर्ण और अंतिम रूप से सहमति देते है तो उन्हें 1 करोड़ 44 लाख रुपए का भुगतान किया जा सकता है। अंततः बीमा कंपनी ने उन्हें 1 करोड़ 41लाख 89 हजार 469 रुपए का भुगतान 9 अक्टूबर 2014 को किया। अधिवक्ता भंडारी ने बहस करते हुए कहा कि बीमा कंपनी के सर्वेयर ने स्टॉक दावे में बिना किसी पुख्ता आधार के 58 लाख रुपए की मनमानी कटौती कर दी और भवन तथा मशीनरी में अवमूल्य कटौती का कोई भी प्रावधान बीमा पॉलिसी में नहीं होने के बावजूद जो राशि कम की गई है,उसे प्राप्त करने का बीमाधारी हकदार है। उन्होंने कहा कि इरडा द्वारा पॉलिसी धारकों के हितार्थ अधिसूचित विनियम में 2 माह में दावे का निपटान किया जाना अनिवार्य है, लेकिन बीमा कंपनी ने परिवादी की विषम आर्थिक स्थिति का फायदा उठाकर दबाव में नुकसान के ढाई साल बाद पूर्ण एवं अंतिम रूप के नाम पर परिवादी से सहमति लेकर जो आधी अधूरी राशि का जो भुगतान प्राप्त किया है,उसके बावजूद बकाया राशि प्राप्त करने का अधिकारी है।
बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि पूर्ण एवं अंतिम भुगतान के बाद किसी के बहकावे में आकर जो परिवाद पेश किया है,उसे सव्यय खारिज किया जाएं। परिवाद मंजूर करते हुए राज्य आयोग ने अपने निर्णय में यह व्यवस्था दी है कि विषम परिस्थितियों में दबाव में आकर परिवादी ने आधी अधूरी राशि प्राप्त करने की सहमति दिए जाने के बावजूद उसे बकाया राशि प्राप्त करने से बाधित नहीं किया जा सकता है और परिवाद पौषणीय है। उन्होंने कहा कि सर्वे रपट अंतिम शब्द नहीं है और सर्वेयर ने बिना ठोस आधार के जो मनमानी कटौती की है और अवमूल्य कटौती का जो प्रावधान लागू किया है,वह सही नहीं है। उन्होंने बीमा कंपनी पर एक लाख रुपए हरजाना लगाते हुए निर्देश दिया कि परिवादी को 45 दिन में बकाया दावा राशि 68 लाख 92 हजार 859 रुपए मय 11 दिसंबर 2014 से 6 फीसदी ब्याज और परिवाद व्यय 21 हजार रूपए अदा करें। 45 दिन में भुगतान नहीं किए जाने पर समस्त राशि पर 9 फीसदी ब्याज अदा करना होगा।
