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नशिराबाद का जगा नसीब, पधारे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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मधुहीर राजस्थान

नशिराबाद, जलगांव (महाराष्ट्र)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में महाराष्ट्र राज्य के खान्देश की यात्रा कर रहे हैं। लगभग एक वर्ष से भी अधिक समय से महाराष्ट्र की धरा को पावन बनाने वाले मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को अपनी धवल सेना के साथ नशिराबाद में पधारे तो मानों नशिराबाद का नसीब ही खुल गया। श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री नशिराबाद में एकदिवसीय प्रवास के लिए न्यू इंग्लिश स्कूल प्राथमिक विद्या मंदिर में पधारे। रविवार को सूर्योदय के कुछ समय पश्चात सुप्रसिद्ध भुसावल नगरी ने युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। भुसावल की जनता ने अपने कृतज्ञ भाव समर्पित किए।

सभी को पावन आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। मार्ग में केले के वृक्षों से भरे हुए खेत इस क्षेत्र को समृद्ध बनाए हुए थे। मार्ग में अनेक लोगों को आशीष प्रदान करते हुए तीव्र धूप में लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर नशिराबाद में पधारे। विद्या मंदिर परिसर में बने वीर सावरकर बहुद्देशीय सभागृह में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी भी जीवन जीता है तथा दुनिया के सभी प्राणी जीवन जीते हैं। जीवन जीने के कितना प्रयत्न करना होता है। जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आदमी को धनार्जन करने की भी आवश्यकता होती है। भोजन के लिए अन्न, कपड़े, मकान, दवा, शिक्षा आदि-आदि कार्य करने ही होते हैं। जीवन है तो मृत्यु भी निश्चित है। मृत्यु कब होनी है, यह किसी को पता नहीं होता।

आत्मा और शरीर का अलग हो जाना मृत्यु, आत्मा और शरीर का संयोग जीवन तथा आत्मा का जन्म-मृत्यु के चक्र से सदा के लिए मुक्ति मोक्ष है। आदमी यह सोचे कि यह जीवन अनित्य है, अशाश्वत है तो क्यों इस मानव जीवन का उपयोग अपनी आत्मा के कल्याण में लगाएं। आत्मा के कल्याण के लिए अपने जीवन को धर्म से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा के शोधन के लिए संवर और निर्जरा की साधना का अभ्यास हो। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी कोई भी व्यापार-धंधा करे, उसमें आदमी को ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में जितना संभव हो सके, हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में शांति रहे, इसके लिए विवेकपूर्व व्यवहार हो। क्रोध से बचने का प्रयास हो। जीवन में नशामुक्तता रहे। इस प्रकार आदमी अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास कर सकता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने नशिराबाद के इस विद्यालय को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां पढ़ने वाले बच्चों में ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कारों के विकास का भी प्रयास हो तो उनके जीवन का भी कल्याण हो सकता है।

आचार्यश्री के पावन पाथेय के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में ब्रह्मकुमारी मंगला दीदी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। न्यू इंग्लिश स्कूल के शिक्षक श्री राजू पांचपाण्डेसर ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावना व्यक्त की। बालिका प्रेक्षा-प्रांजल कुचेरिया, अवनि कुचेरिया, जिनल कुमठ, किरण कुचेरिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्रीसंघ की ओर से श्री नितीन चोपड़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थनीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम के अंत में रावेर से भाजपा की सांसद व वर्तमान भारत सरकार में राज्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाली श्रीमती रक्षा खडसे आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुईं। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीष प्राप्त किया।

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