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साध्य और साधन की शुद्धि आवश्यक : युगप्रधान आचार्य महाश्रमण

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लगभग 32 दिनों बाद गुरुकुलवास में पहुंची साध्वी प्रमुखा जी आदि साध्वियां मानो वनवास खत्म हुआ साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा

(महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी लोक कल्याण के महान उद्देश्य के साथ महाराष्ट्र राज्य में पदयात्रा करते हुए गतिमान है। आज आचार्यश्री का छत्रपति संभाजीनगर के बाहरी हिस्से में स्थित देवलाई के ग्रीन ग्लोब विद्या मंदिर स्कूल में पदार्पण हुआ। इसी के साथ ही आज पुणे से पधारी साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी आदि साध्वी वृंद भी गुरु सन्निधि में पहुंची। पुणे में स्वास्थ्य लाभ लेने के पश्चात लगभग एक माह के बाद साध्वीप्रमुखा श्री जी पुनः गुरुकुलवास में सम्मिलित हो गई। प्रातः जब गुरुदेव का प्रवास स्थल पर पदार्पण हुआ उस समय साध्वीप्रमुखा जी आदि साध्वीवृंद गुरुदेव की आगवानी में खड़े थे। दोनों विभूतियों का आध्यात्मिक मिलन देख कर पूरा वातावरण जय जयकारों से गूंज उठा। कल संभाजीनगर प्रवेश से पूर्व साध्वीप्रमुखा श्री के आगमन से क्षेत्र वासियों का हर्ष भी द्विगुणित हो गया। मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – संयम व तप में आध्यात्म का बहुत बड़ा सार समाया है। एक ओर भोग व दूसरी ओर संयम। अनुश्रोत का मार्ग आसान व प्रतिश्रोत का मार्ग कठिन होता है। प्रवाह में साथ चलना अनुश्रोत व प्रवाह के विपरीत चलना प्रतिश्रोत का मार्ग है। साधन शुद्ध हो तभी साध्य तक पहुंचा जा सकता है व रास्ता सही तो तभी मंजिल तक। संयम और तप से हम अपने मोक्ष के साध्य तक पहुँच सकते है। जिस साध्य व साधन से शुद्ध अहिंसा, संयम व तप की वृद्धि होती है उस साध्य और साधन से मोक्ष का पथ भी प्रशस्त बनता है। कहीं कहीं भौतिक पक्ष में भी साध्य और साधन की शुद्धि का महत्व हो सकता है। चाहे बात व्यक्ति की हो, समाज की हो या राष्ट्र की इन दोनों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।

गुरुदेव ने आगे कहा कि साध्य राष्ट्र हित का हो तो साधन में भी अहिंसा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग होना चाहिए। न्यायपालिका में भी न्याय को प्रार्थमिकता दी जाए, निष्पक्ष निर्णय हो तथा व्यक्तिगत राग-द्वेष के लिए कोई स्थान न रहे। राजा के तीन कर्तव्य होते है – सज्जनों की रक्षा, असज्जनों को दंड व आश्रितों का भरण-पोषण। पुलिस भी न्याय में अपनी शक्ति सदा सदुपयोग करें व दुरुपयोग न हो। आम जनता में शांति व अनुशासन ही उसका साध्य रहे। हर कार्य में साध्य और साधन की शुद्धि आवश्यक होती है। गुरुदेव ने आगे प्रसंगवश कहा कि आज साध्वीप्रमुखाजी का आना हो गया। लगभग 32 दिनों के बाद आए है। पुणे को प्रवास का और मौका मिल गया। इतने दिनों में यात्रा भी हो गई। प्रमुखाजी ने भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आज गुरुदेव के दर्शन कर लगता है मानो 32 दिनों का वनवास खत्म हो गया। आज गुरु दर्शन कर अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही। इस अवसर पर मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने भी अपने विचार रखे। पुणे सभा अध्यक्ष महावीर कटारिया विचाराभिव्यक्ति दी। पुणे श्रावक समाज ने गीत का संगान किया। विद्यालय की ओर से श्री पोपट आरंजन माली ने स्वागत में विचार रखे।

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