जोधपुर। अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जो किसी भी हो सकता हैं। जागरूकता के लिए मई के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस मनाते हैं। केएन टीबी चेस्ट हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ. सीआर चौधरी ने बताया कि अस्थमा फेफड़े की एलर्जी का रोग है। ये बीमारी वंशानुगत भी हैं, जो परिवार से आती हैं। 80 प्रतिशत इस तरह के लक्षण बाल्यावस्था में दिख जाते हैं। कई लोग इसको इग्नोर कर देते हैं। खांसी आना, सांस में सीटी जैसी आवाज आना, छाती में जकड़न रहना, बच्चों में रात्रि में जगना और बार-बार बच्चों को जुकाम होना इसके मुख्य लक्षण है। इस तरह के लक्षण दिखे तो रोगी को तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए। ये बीमारी विश्व में एक साथ आगे बढ़ रही है। चिकित्सकों के अनुसार अस्थमा सामने आने की कोई उम्र नहीं होती। अस्थमा माइल्ड, मॉडरेट व सिवियर तीन तरह के होते हैं। तीनों में इलाज लेना जरूरी होता है। कई बार माइल्ड अस्थमा अटैक भी मौत का कारण बन जाता है। ब्लड प्रेशर व डायबिटीज बीमारी की तरह अस्थमा को भी कंट्रोल किया जा सकता है। रोगी ठंडी, ज्यादा तली व चिकनी चीजें खाने से बचें, क्योंकि ये खांसी बढ़ाती हैं।
अस्थमा को रोकने के लिए इनहेलर दवाइयां आई हुई हैं। इसमें दो तरह की दवाइयां होती है। एक दवा होती है रोकथाम के लिए। अस्थमा से श्वास नलियों में सूजन व म्यूकस बन जाता है। दूसरा रिलीवर इनहेलर आता है, जो अस्थमा के अटैक के समय काम आता है। अक्सर लोग रूटिन में लेने वाले इनहेलर को छोड़ देते हैं और अटैक वाला इनहेलर लेते हैं, क्योंकि इससे हाथोंहाथ रिलीफ मिलता है। प्राणघातक अटैक में कई बार स्टॉराइड भी काम नहीं आता। अस्थमा दौरे से पहले मरीजों को लक्षण भी दिख जाते हैं। आज दुनियाभर में अस्थमा एक बड़े गैर संचारी रोग के रूप में उभर रहा है। इसका असर शहर में भी देखा जा रहा है। यहां के अस्पतालों की ओपीडी में आने वाले हर 100 में से 3 लोग अस्थमा के नए रोगी निकल रहे हैं। गंभीर बात यह है कि लोग इसके इलाज को लेकर लापरवाही बरत रहे हैं। लंबे समय तक वे खुद की लापरवाही से अपना इलाज नहीं करवा पाते। जोधपुर में अस्थमा के प्रमुख कारण देखें तो धूल, धुआं, पराकण, इमोशनल उतार-चढ़ाव, वातावरण का बदलना और पालतू जानवर के मृत कणों का मानव शरीर में प्रवेश अस्थमा के मुख्य कारण हैं। इसके अलावा सबसे बड़ा कारण चिकित्सकों के सामने हाउस डस्ट माइट होता है।
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