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किसान बारिश का लगायेंगे अनुमान, खेत-खलिहान की बातें और अच्छे जमाने की शुभकामनाओं का संचार

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सालों से चली आ रही सामाजिक एकता की परम्परा

भीनमाल (माणकमल भंडारी)। किसानों का महापर्व यानि अक्षय तृतीया । हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में जब सूर्य और चन्द्रमा अपने उच्च प्रभाव में होते हैं और जब उनका तेज सर्वोच्च होता है, उस तिथि को हिन्दू पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ माना जाता है। इस शुभ तिथि को कहा जाता है ‘अक्षय तृतीया’ अथवा ‘आखा तीज’ । इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका सुखद परिणाम मिलता है। पारंपरिक रूप से यह तिथि भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम की जन्मतिथि होती है । इस तिथि के साथ पुराणों की अहम वृत्तांत जुड़े हुए है। राजस्थान में यो तो कई त्यौहारों का अपना एक महत्व होता है। उन त्यौहारों में से एक मुख्य त्यौहार आखा तीज भी होता है। इस दिन होम, जप, तप, दान, स्नान आदि किए जाते है। इसी कारण भी इसे अक्षय तृतीया कहते हैं । इस दिन प्रत्येक घर में नया धान आ जाता है । अतः उसका स्वागत करते गेहूं, चना, तिल, जौ, बाजरी, मूंग और मोंठ आदि सात खाद्यानों की पूजा करके शीघ्र वर्षा हेतु प्रार्थना की जाती है कि आगामी वर्ष भी अच्छी फसल वाला हो। इस दिन विवाह हेतु बिना देखा अबूझ मुहूर्त होता है। जमाना भले ही आधुनिक हो गया है, खेती पारंपरिक से वैज्ञानिक हुई है लेकिन आखातीज यानि अक्षय तृतीया का महत्व आज भी वैसा ही है।
आंधल घेटा खुण खुणयो, लाम्बी चोटी नारेलो…..गीत पर निराला खेल
आंधळ घेटा अक्षय तृतीया का सबसे पसंदीदा खेल है। इसमें आंखों पर पट्टी बांधकर दौड़ लगाते हुए साथियों को पकडऩा होता है। इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण मानसिक दक्षता माना गया है। यह खेल रचनात्मक गतिविधियों से परे है। इस खेल के साथ-साथ लोकायुक्त के साथ गायन होता है जिसके बोल आंधल घेटा खुण खुणयो, लाम्बी चोटी नारेलो है। इसी के साथ ही खेल से सामाजिक एकता और विश्वास का खेल होता है। इस खेल में पुरूष, महिलाए, बच्चे, बडे एवं बूढे बडे उत्साह के साथ खेल में भाग लेते है।
शगुन विचार की परंपरा से हजारो सालो से लगा रहे अनुमान
नागरिक कल्याण मंच के अध्यक्ष माणकमल भंडारी बताते हैं कि अक्षय तृतीया पर शगुन विचारे जाते है। इसमें बारिश के चार महीनो ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद में बारिश होगी या नहीं । इसको लेकर बच्चों को भी ज्ञान दिया जाता है। यह भी परंपरा सदियों से आ रही है। मुख्य शगुन जो हर गांव में विचारे जाते है, उनका आधार वैज्ञानिक भी रहता है।
पहला शगुन –
कच्ची मिट्टी के चार बर्तन बनाकर उनमें पानी भरा जाता है। ये चार बर्तन ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद नाम से रहते है। जिस बर्तन में पानी पहले फूटता है उसमें भरपूर बारिश मानी जाती है। इसी क्रम में चारों बर्तनों को देखते है।
दुसरा शगुन
गांवों में चिडि़या और तीतर की आवाज पर सवेरे किसान ध्यान देते है। उत्तर दिशा में चिडि़या का सगुन अच्छा माना जाता है। इसी तरह सगुन चिडि़या दांयी और बोले तो उसको विशेष महत्व देते है।
तीसरा शगुन
बाजरा, मूंग, मोठ, तिल, ग्वार की फसलें यहां खरीफ में होती थी। इनके बीज खेत और घर के आंगन में रखे जाते है। इन बीजों को चिंटिया जिस दिशा में ले जाती है, माना जाता है उस दिशा में अच्छा जमाना होगा।
चौथा शगुन
काली और सफेद दो ऊन को पानी में रखा जाता है। इसमें जो ऊन पहले डूब जाए उस हिसाब से माना जाता है कि काली ऊन मतलब अकाल डूबा और सफेद मतलब सुकाल डूबा।
पांचवा शगुन
कोई चिड़िया मिट्टी नहलती है और कोई चिड़िया जितना ऊँचा घोंसला बनाती है। जिससे अनुमान लगाया जाता है कि उतनी ऊंचा अनाज बढेगा।  इसके अलावा हवाओ को देखकर आने वाले जमाने की परख कर लेते हैं। इसी दिन ये फसल तथा जमाने के शकुन देखते हैं व सभी तरह के अनाजों के बारे मे चर्चा करते है।
बाजरे का सोगरा, सांगरी का साग, पंचधान के साथ खीच का महत्व
मीडिया प्रभारी माणकमल भंडारी ने बताया कि आखातीज के त्यौहार पर बाजरे का खींच बनाया जाता है। बाजरे का खींच ही प्राथमिकता से बनता है, इसमें दही, दूध, घी के अलावा केर सांगरी और देसी सब्जियां ही बनती है। इसके अलावा सांगरी के साथ गोल-गोल गेहूँ के आटे के ढोकले उबालकर फिर चीनी और देशी घी के साथ बडे चाव से खाये जाते है।
आखातीज के मौके पर शादियों की रहती है धूम
शादी के ढोल नगाड़े, बैंड बाजों और पकवानों का दौर चलता है। लोग दिन भर शादी विवाह के कार्यक्रमों में ही व्यस्त नजर आते  है। लेकिन इस बार मुहूर्त नहीं होने की वजह से शादीएं बहुत कम मात्रा में होगी ।

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