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विवादास्पद बयान से बैठा भट्टा

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कांग्रेस का लगातार भट्टा बैठाने  के बाद सैम पित्रोदा को आखिर हटना पड़ा

अशोक भाटिया

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक,  एवं टिप्पणीकार

अपनी नस्लवादी टिप्पणी को लेकर चल रहे विवाद के बीच सैम पित्रोदा ने बुधवार को अपनी मर्जी से इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का फैसला किया। उनके इस फैसले को सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने स्वीकार कर लिया है। यह पहली बार नहीं था कि सैम पित्रोदा ने कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी की हो इसके पहले भी अपने विवादास्पद बयान से वे कांगेस का भट्टा बैठा चुके है व बाद में कांग्रेस को उन बयानों पर लीपा  पोती करके अपने को संभालना पड़ा है । अक्सर राहुल गांधी के करीबी सहयोगी माने जाने वाले पित्रोदा ने हालिया बयान में  कहा कि भारत के पूर्व में लोग चीनी जैसे दिखते हैं और दक्षिण में लोग अफ्रीकियों जैसे दिखते हैं। पित्रोदा का एक वीडियो सामने आया , जिसमें वह भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की तुलना इस तरह करते नजर आ रहे हैं जिससे कोई भी नाराज हो सकता है।पित्रोदा कहते हैं कि ‘भारत एक अत्यंत विविधता भरा देश है, जहां पूर्वी भारत में रहने वाले लोग चीन के लोगों जैसे, पश्चिम में रहने वाले अरब जैसे, उत्तर भारत में रहने वाले श्वेतों की तरह और दक्षिण में रहने वाले अफ्रीकी लोगों की तरह दिखते हैं। लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता। हम सभी भाई-बहनें हैं। वे कहते हैं कि हम अलग-अलग भाषाओं, धर्मों और रीति-रिवाजों का सम्मान करते हैं। ये वही भारत है, जिस पर मेरा भरोसा है, जहां हर किसी का सम्मान है और हर कोई थोड़ा-बहुत समझौता करता है।’ देखा जाए तो यह बहुत सामान्य सी बात है। हम लोग आम जीवन में इस तरह की तुलनात्मक बातें करते रहते हैं। पर जब कोई शख्स आम के बजाय खास बन जाता है तो उसकी बातचीत के कई मतलब निकाले जाते हैं। और जब चुनाव चल रहे हैं और आप देश की सबसे बड़ी पार्टी में से एक के जिम्मेदार सदस्य हैं तो आपकी जवाबदेही और बनती है कि आप क्या बोल रहे हैं?

शायद यही कारण है कि सैम पित्रोदा का बयान वायरल होते ही भाजपा  की ओर से प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा संभाल लिया। तेलंगाना के वारंगल में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए सैम पित्रोदा के बयान पर कांग्रेस और राहुल गांधी को जमकर घेरा। उन्होंने कहा कि ‘आज मैं बहुत गुस्से में हूं। शहजादे के एक अंकल ने आज ऐसी गाली दी है, जिसने मुझे गुस्से में भर दिया है। संविधान सिर पर रखने वाले लोग देश की चमड़ी का अपमान कर रहे हैं।’ आखिर प्रधानमंत्री  को कांग्रेस पर हमला करने का मौका किसने दिया?

इससे पहले कांग्रेस नेता पित्रोदा ने विरासत कर के बारे में बात करके विवाद खड़ा कर दिया था, जिसे भाजपा ने चुनावी मुद्दा बना लिया। पित्रोदा ने कांग्रेस के घोषणापत्र में संपदा के पुन: वितरण के मुद्दे पर बात करते हुए अमेरिका में विरासत कर का उल्लेख किया था। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। पित्रोदा ने 6 अप्रैल 2019 को कहा था कि मध्यम वर्ग को स्वार्थी नहीं बनना चाहिए। उन्हें ज्यादा टैक्स देने के लिए कमर कस लेना चाहिए। इस बयान के बाद कांग्रेस पार्टी सकते में आ गई। पार्टी को सफाई देनी पड़ी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वो मध्य वर्ग पर कोई अतिरिक्त कर का बोझ नहीं डालेगी। 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान सिख दंगों पर एक बयान देकर पित्रोदा फंस गए थे। दरअसल, भाजपा ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए राजीव गांधी को मास्टरमाइंड कहा था। इस पर पूर्व प्रधानमंत्री के करीबी सहयोगी रहे पित्रोदा ने 10 मई 2019 को कहा था, अब क्या है 1984 का। भाजपा ने 5 साल में क्या किया, उसकी बात करें। 84 हुआ तो हुआ, आपने क्या किया। कांग्रेस को इस बयान से भी किनारा करना पड़ा और पित्रोदा को माफी मांगनी पड़ी। पुलवामा में आतंकी हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी। इस पर सवाल उठाते हुए 22 मार्च 2019 को पित्रोदा ने कहा था कि ऐसे हमले होते रहते हैं। कुछ आतंकियों ने हमला किया, इसकी सजा पूरे पाकिस्तान को क्यों दी जा रही है। 6 जून 2018 को राम मंदिर पर पित्रोदा ने कहा था कि भारत में बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसी समस्याओं के बारे में कोई बात ही नहीं करता। हर कोई राम, हनुमान और मंदिर की बात करते हैं। मंदिर बनाने से लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा।

सबसे पहला सवाल यही उठता है कि क्या कांग्रेस जानबूझकर ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन नहीं लेती? क्योंकि यह बार-बार देखा जाता है कि कांग्रेस पार्टी में एक गलती करने वाला बार-बार वैसी ही गलतियां करता है। उन गलितयों को पार्टी उनका व्यक्तिगत मामला मानकर पल्ला झाड़ लेती है। यह भी कहती है कि उनका स्टैंड पार्टी का स्टैंड नहीं है। पर बाद में ऐसे शख्सियत जब पार्टी में पुरस्कृत होते हैं तो संदेह होना लाजिमी हो जाता है। एक उदाहरण दिग्विजय सिंह का है। दिग्विजय सिंह लगातार आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी जताने के जाने जाते हैं। कभी ओसामा बिन लादेन और हाफिज सईद के नाम के आगे जी लगाने के लिए उनकी कड़ी आलोचना हुई थी। इसी तरह उन्होंने बाटला हाउस एनकाउंटर में भी मारे गए आतंकियों के लिए संवेदना जताई थी। हर बार वो इस तरह की गलतियां करते रहे हैं पर उनपर कोई एक्शन भी नहीं होता। अब लोकसभा टिकट से उन्हें उनकी गलतियों के लिए पुरस्कृत किया गया है।जाहिर है कि ऐसा ही विजय वेडट्टियार और चरनजीत सिंह चन्नी के साथ भी है। चरनजीत सिंह चन्नी ने एयरफोर्स हमले को ही फॉल्स ऑपरेशन की संज्ञा दे दी। विजय वेडट्टियार ने कसाब को निर्दोष करार दे दिया। इस तरह की बातें करने वालों पर कोई एक्शन नहीं होने से कई बार ऐसा लगता है कि क्या कांग्रेस में यह सब एक योजनाबद्ध तरीक से तो नहीं होता।क्योंकि दूसरी पार्टियों में इस तरह की हरकत करने वालों को तुरंत दंडित कर दिया जाता है।

पित्रोदा केस में ऐसा ही हुआ, उन्होंने इस्तीफा दिया है पर उन्हें दंडित नहीं किया गया है। ये बात खुद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करके कही है कि सैम पित्रोदा का इस्तीफा कांग्रेस अध्यक्ष ने मंजूर कर लिया है पर उन्होंने इस्तीफा अपनी मर्जी से दिया है। मतलब सीधा है कि कांग्रेस ने एक्शन नहीं लिया है पित्रोदा खुद अलग हो गए हैं।

कांग्रेस में अकसर ऐसा देखा गया है कि किसी खास मुद्दे पर ठीके एक दूसरे से विरोधी विचार सामने आते हैं। और एक साथ आते हैं। द्रमुक नेता उदयनिधि मारन के सनातन को डेंगू मलेरिया कहने के बाद कांग्रेस में एक साथ कई विचार आए। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पुत्र प्रियांक खरगे को उदयनिधि मारन की बातों में कोई बुराई नहीं दिखी। पर ठीक उसी समय मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इसका खंडन किया। देशभर में दर्जनों ऐसे नेताओं के बयान आए जो मारन की बातों से यकीन नहीं रखते थे। तो बहुत से लोगों ने सीधे मारन और खरगे को सपोर्ट किया। इसी तरह राम मंदिर के मुद्दे पर पूरी पार्टी में अलग-अलग विचार सामने आते रहे। कोई समर्थन में था तो कोई इसके विरोध में । कोई भी पार्टी इस तरह के विचारों पर एक मत नहीं है तो निश्चित है कि उसके समर्थकों में कन्फ्यूजन पैदा होगा। पर कांग्रेस नेताओं को लगता है कि इस तरह एक ही मुद्दे पर अलग-अलग विचार करके सभी विचार वालों को पार्टी चुनावों में साध लेगी। पर जब जनता के सामने विकल्प को रूप मे ऐसी पार्टियां रहेंगी जो एक विचार पर पूरी शिद्दत से लगी हुई हैं तो जनता ऐसे ढुलमुल विचार वाले के साथ क्यों जाएगी।

यह सही है कि लोकतंत्र में एक आदर्श स्थिति यह है कि पार्टी के अंदर सभी लोगों को अपने विचार प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता हो। इस लिहाज से देखा जाए तो यह सही है। पर विचार स्वतंत्रता के नाम पर पार्टी के मूल विचारों से अलग होने की स्वतंत्रता तो नहीं ही दी जा सकती है।  ब्रिटेन और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों में पार्टी के अंदर विचारों की स्वतंत्रता दे जाती है। पर पार्टी की मूल विचारधारा को जब कोई पार करने लगता है तो उसे पार्टी से अलग ही होना होता है। जैसे कांग्रेस एक राष्ट्रवादी धर्मनिरपेक्ष पार्टी होने का दावा करती है।पर जब राष्ट्रवाद से इतर बात करने वाले या धर्मनिरपेक्षता को नकारने वाले लोग अपनी बात रखने लगते हैं उसे कंट्रोल करना जरूरी हो जाता है। पर कांग्रेस के अंदर ऐसा होता। इसलिए ऐसा लगता है कि छवि को लिबरल रखने के लिए नहीं बल्कि पार्टी में अनुशासन की कमी के चलते ऐसा होता है।

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