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जल से जुड़ा है भविष्य का संकट

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यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 तक भारत में पानी की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी !

अशोक भाटिया 

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक,  एवं टिप्पणीकार

भारत में पानी की बर्बादी पर लोग आम तौर पर परेशान नहीं होते हैं। शहर हो या गांव, हर जगह लोग पानी का बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकारें भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही हैं। लेकिन भारत में पानी की कमी कितनी भयावह हो सकती है इसका अंदाजा आप यूनेस्को की इस रिपोर्ट से लगा सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 तक भारत में पानी की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। ऐसी आशंका भी जताई गई है कि जल संरक्षण की कमी, प्रदूषण, अतिक्रमण, शहरीकरण और ग्लेशियर पिघलने के कारण आने वाले समय में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा।

यूनेस्को की रिपोर्ट की मानें तो साल 2016 में धरती पर 9.33 करोड़ आबादी पानी के संकट से जूझ रही थी। उसके बाद कई देशों में जल-संकट काफी तेजी से बढ़ा। रिपोर्ट में एक और बड़ा दावा ये भी किया गया है कि एशिया में लगभग 80 प्रतिशत आबादी जल संकट से जूझ रही है। यह संकट पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान पर सबसे ज्यादा है।

महाराष्ट्र में पारा 40 के पार पहुंच गया है। चिलचिलाती धूप के कारण मुंबई को जलापूर्ति करने वाले जलाशय तेजी से सूख रहे हैं। मुंबई को पानी आपूर्ति करने वाली सातों झीलों का पानी जुलाई में खत्म हो जाएगा। झीलों में पानी का मौजूदा स्तर मुंबईकरों को चिंतित कर रहा है। मुंबई को पानी की आपूर्ति करने वाले सात जलाशयों में फिलहाल 16 फीसदी पानी बचा है और पिछले साल की तुलना में यह भंडार काफी कम है। मौसम विभाग ने भी चेतावनी दी है कि अगले कुछ दिन इसी तरह गर्मी जैसे हालात बने रहेंगे, जिसके चलते मुंबई में 15 से 20 फीसदी पानी की कटौती का संकट पैदा हो गया है। हालांकि बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने लोगों को सांत्वना देते हुए कहा है कि शहर में जल आपूर्ति कर रहे सात जलाशयों का भंडार जुलाई के अंत तक रहेगा और निवासियों को चिंता करने की जरूरत नहीं है

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में भी भारत के प्रमुख 21 शहरों में लगभग 10 करोड़ लोग पानी की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। देश में साल 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6 हजार घन मीटर थी जो साल 2025 तक घटकर 1600 घन मीटर रह जाने की संभावना जताई गई है। इसके अलावा देश की बढ़ती आबादी भी जल संकट का एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

ऐसे में वर्तमान में जल को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले सालों में लोगों को पीने का पानी तक ढंग से मुहैया करवाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। जल को संरक्षित करने के किसी भी प्लान को बनाने के लिए सरकार के पास देश के सभी नदियों और जलाशयों का डेटा होना चाहिए। जो कि सबसे बड़ी चुनौती है।

दरअसल वाटर रिसोर्सेज इनफॉरमेशन सिस्टम के पास जलाशय और नदियों का आंकड़ा तो मौजूद है लेकिन अलग-अलग शहरों के छोटी नहरों का कोई डाटा मौजूद नहीं है जिन्हें ग्रामीण भारत की जीवन रेखा माना जाता है और यही नहरें बाढ़ रोकने के लिए बहुत ही ज्यादा कारगर होती हैं।  इसके अलावा भारत में पानी के आंकड़े तैयार करने वाली एजेंसियां राज्य स्तर पर हैं और ये राज्य इन डाटा को तैयार करने के विकेंद्रीकृत और लोकल मैकेनिज्म का उपयोग करती हैं।ऐसे में जल निकायों का प्रबंधन करने के लिए, हमें औपचारिक डेटा के साथ एकीकृत करने के लिए समुदायों के प्रासंगिक और पारंपरिक ज्ञान की आवश्यकता है।

आज दुनिया का बड़ा हिस्सा अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए पानी की कमी से जूझ रहा है। इस समस्या को समझते हुए विश्व में पानी की बर्बादी रोकने, महत्व समझने, संरक्षण करने और सही मात्रा में पानी का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए तरह तरह की योजनाएं और तरीके निकाले जाने जरुरी  हैं।

भारत में ज्यादातर जल स्रोत जैसे तालाब, कुएं, नहर, नदियां सूखती और प्रदूषित होती जा रही हैं। ये जल संकट की ओर इशारा है, इसलिए इस स्थिति में जल्द से जल्द परिवर्तन लाना बेहद जरूरी है। शहरों में नहर होने के कई फायदे होते हैं ये नहर बारिश के पानी को संरक्षित करने का सबसे आसान और कारगर तरीका है । सामान्य तौर पर, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे शुष्क राज्यों में बहुत सारी नहरें और छोटे- छोटे जलाशय बनाए जाते हैं। सूखाग्रस्त राज्यों में नहरों और छोटे छोटे जलाशयों का का मुख्य रूप से सिंचाई और भूजल पुनर्भरण के लिए उपयोग किया जाता है। केरल, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में नहर का इस्तेमाल घरेलू उपयोग और मछली पालन के लिए भी किया जाता है।

जल शक्ति मंत्रालय ने अप्रैल 2023 में भारत की पहली जल निकायों की जनगणना की रिपोर्ट जारी की है, जो देश में तालाबों, टैंकों, झीलों और जलाशयों का एक व्यापक डेटा बेस है। जनगणना के अनुसार भारत में तालाबों, टैंकों और झीलों जैसे 24.24 लाख जल निकाय हैं।  पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 7.47 लाख जल संरचनाएं हैं जबकि सिक्किम में सबसे कम 134 जल संरचनाएं हैं। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी जल संख्या गणना के मुताबिक भारत में कुल 24.24 लाख जल संरचनाएं हैं, जिनमें से 97.1 प्रतिशत यानी 23.55 लाख ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और केवल 2.9 प्रतिशत यानी 69,485 शहरी क्षेत्रों में हैं। इसी जनगणना के मुताबिक टैंकों की सबसे ज्यादा संख्या आंध्र प्रदेश में है, जबकि तमिलनाडु में सबसे ज्यादा संख्या झीलों की है।

केंद्रीय जल शक्ति मिनिस्ट्री की रिपोर्ट के अनुसार देश के अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा जलाशयों की गणना की गई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे 2023 के अप्रैल महीने में ट्वीट के माध्यम से ये लिखा था  कि आगे चलकर राज्य में पानी का संकट सामने नहीं आए, इसके लिए राज्य की महायुति की सरकार कटिबद्ध है।

इस रिपोर्ट के अनुसार देश में ज्यादा जल निकाय बहुत छोटे हैं। भारत के अधिकांश जल निकाय एक हेक्टेयर से कम बड़े हैं। इसका मतलब ये है कि उनका पता लगाना और उन पर नजर रखना एक चुनौती बने रहने की संभावना है। उपग्रहों का उपयोग करके इन जल निकायों को मानचित्रित करने का तरीका भी काम नहीं कर सकता है, यही कारण है कि भू-आधारित ट्रैकिंग यानी जल शक्ति जनगणना की शुरुआत की गई। इसी रिपोर्ट के अनुसार कई जल निकायों का पानी इतना पुराना और इतना गंदा है कि उसे इस्तेमाल नहीं करने में वर्गीकृत किया गया है।

बता दें कि पिछले कुछ सालों में इजरायल ने बारिश के जल संचय के साथ पानी का बेहतर इस्तेमाल कर जल संकट की मुसीबत से छुटकारा पा लिया। भारत में वर्तमान में एक साल में जितनी बारिश होती है, अगर उसका संचय सही तरीके से  किया जाए और नई तकनीक से उसे पीने के लायक बनाकर इस्तेमाल किया जाए, तो बहुत हद तक समस्या कम हो सकती है। जरूरत है कि पानी को बचाने के लिए हम प्रतिबद्ध हों, तभी पानी हमारा ‘जीवन रक्षक’ बन सकेगा।

चिंताजनक स्थिति यह भी है कि न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया की लगभग 26 प्रतिशत जनसंख्या को साफ पानी तक नहीं मिल पा रहा है। पश्चिमी एशिया और अफ्रीका के बहुत-से देशों में पेयजल का संकट है। लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता। दुनिया के 2 से 3 अरब लोग साल में कम से कम एक महीने पानी की कमी से जूझते हैं।

वर्तमान स्थिति में भारत भूजल का अन्य देशों की तुलना में सबसे ज्यादा इस्तेमाल करता है। हालांकि निकाले गए भूजल का सिर्फ 8 प्रतिशत पानी ही पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पानी का 80 फीसदी भाग सिंचाई में उपयोग किया जाता है। शेष 12 प्रतिशत भाग उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार देश में जल संकट की वजह यहां जरूरत से ज्यादा भूजल का दोहन है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की मानें तो देश में हर साल सिंचाई के लिए 230 अरब घन मीटर भूजल निकाला जाता है, इस कारण है कि कुछ राज्यों में भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है।

वैज्ञानिकों की माने तो धरती का तापमान जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है वैसे ही ऋतु-चक्र में बदलाव देखने को मिल रहे हैं और पानी की किल्लत से परेशानियां बढ़ रही हैं। दरअसल पिछले बीस सालों में धरती के बढ़ते तापमान, ग्रीन हाउस गैसों का असर और ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत के ऋतु-चक्र में‘अल-नीनो’ का असर देखने को मिल रहा है। जिसका मतलब है कि देश में बरसात कम हो रही है और गर्मी बेतहाशा बढ़ती जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में दूसरे देशों की तुलना में पानी की बर्बादी कहीं ज्यादा होती है।

जल संकट की एक बड़ी वजह कारखानों के जहरीले पानी को पाइप के मदद से जमीन के अंदर पहुंचाना भी है। दरअसल भारत में तीन लाख से ज्यादा छोटे-बड़े बूचड़खाने हैं। इन कारखानों में हर दिन करोड़ों लीटर पानी बर्बाद किया जाता है। इसी तरह दूसरे देशों में भी बूचड़खानों के कारण करोड़ों लीटर पानी बर्बाद होता है।

जल संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए भारत सरकार की योजना के बारे में बताया जाता है कि इस समाया भारत में जल संरक्षण की चार योजनाए चल रही है 1। राष्ट्रीय जल नीति, 2012 –2, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 3, जल शक्ति अभियान- ‘कैच द रेन’ अभियान 4, अटल भूजल योजना ।

पानी की किल्लत सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया होने वाली है। जल संकट आने वाले समय में झगड़े-फसाद की वजह भी बन सकता है। जानकारों की मानें तो अगला विश्व युद्ध पानी के एकाधिकार को लेकर हो सकता है।

बात भले ही हास्यापद लगे परन्तु बताया जाता है कि ग्रामीण महाराष्ट्र में कई लोगों ने दूसरी शादी इसलिए करते हैं ताकि एक पत्नी पानी लाए और पहली पत्नी घरेलू कार्य निपटा सके। इस टर्म को ‘वाटर वाइफ’ कहते हैं। अगर दूसरे राज्यों में भी ऐसे हालात हुए तो संभव है कि महाराष्ट्र का यह प्रयोग दूसरे राज्य के लोग भी करने लग जाए, जो आगे चलकर कई सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक समस्याओं का कारण बन सकता है।

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