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तपस्या के साथ कषाय अल्पीकरण की हो साधना

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सात साधु–साध्वियों सहित 300 से अधिक तपस्वियों ने किया वर्षीतप का पारणा

छत्रपति संभाजीनगर (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। शुक्रवार 10 मई का दिन छत्रपति संभाजीनगर वासियों के लिए चिरस्मरणीय बन गया जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में अक्षय तृतीया समारोह में तीन सौ से भी अधिक तपस्वियों ने अपने वर्षीतप का पारणा किया। श्रद्धालुओं का वर्षों से संजोया स्वप्न मानों आज फलित हो गया। आचार्य श्री महाश्रमण का पावन सान्निध्य और साधु साध्वियों की विशाल उपस्थिति में आयोजित इस भव्य समारोह को देखने हजारों नयन साक्षी बने और धन्य धन्य हो गए। प्रेसिडेंट बैंक्वेट हॉल में विराजित आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः 8:30 बजे से ही समारोह का प्रारंभ हो गया। नमस्कार महामंत्रोच्चार के द्वारा गुरूदेव ने शुभारंभ किया। विशाल प्रवचन पंडाल में जहां जहां नजर जाए वहां का स्थान श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ नजर आ रहा था। सभी तपस्वियों के पारणे का पल देखने के लिए लालायित थे की कैसे गुरुदेव एक एक तपस्वी के द्वारा इक्षु रस की भिक्षा ग्रहण कर उन्हें कृतार्थ करेंगे। आचार्यश्री के उद्बोधन से पूर्व मुख्यमुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्ध यशा जी का सारगर्भित वक्तव्य हुआ। धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा– दुनिया में अनेक प्रकार के मंगल कहे जाते है। शास्त्रों में धर्म को उत्कष्ट मंगल बतलाया गया है। व्यक्ति स्वयं का भी मंगल चाहता है और वह दूसरों के मंगल की भी कामना करता है। मेरा भी मंगल हो, इस आत्मा का भी मंगल हो व सबका मंगल हो।

शरीर का स्वस्थ रहना व मन का प्रसन्न रहना मंगल का प्रतीक है। धर्म कौनसा ? अहिंसा, संयम और तप। यह धर्म के तीन प्रकार है व जिसका मन धर्म में रमा रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। यहाँ दो बातों का महत्व – धर्म के उत्कृष्ट मंगल होने का व देवताओं के द्वारा नमस्कार करने का। मनुष्य तो देवों को नमस्कार करते हैं लेकिन देव द्वारा धार्मिक मनुष्यों को नमस्कार करना धर्म महिमा की विशेष बात है। गुरुदेव ने आगे कहा कि आज का दिन भगवान ऋषभ से व दान की महिमा से जुड़ा दिन है। इक्षु रस का दान प्रभु ऋषभ द्वारा ग्रहण किया गया था। भगवान ऋषभ एक प्रशिक्षक भी हुए। उन्होंने गार्हस्थ्य जीवन में समाज को असि, मसि व कृषि का भी प्रशिक्षण दिया व बाद में दीक्षा ग्रहण कर वे अध्यात्म के वेत्ता बन गए। उन्होंने ज्ञान का व धर्म साधना का भी ज्ञान दिया। नमस्कार महामंत्र, भक्ताम्बर स्तोत्र व उमा स्वाति द्वारा लिखित तत्वार्थ सूत्र जैन एकता के प्रतीक है जो दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों परम्परा में मान्य है। नमस्कार महामंत्र भी हमारा एक है। भेद में भी अभेद को देखा जा सकता है। गुरुदेव ने प्रसंगवश आगे कहा कि आज के दिन अनेक श्रावक श्राविकाएं वर्षीतप की साधना करते है। करीब तेरह महीनों तक एक दिन खाना व एक दिन उपवास करना होता है। हमारे कितने साधु साध्वियों के भी कई वर्षों से वर्षीतप चल रहा है। धन्य है वे जो आत्म शुद्धि की भावना से तप कर रहे है। तप के साथ साथ भीतर के कषाय भी अल्प हो। पूर्व में 2020 में औरंगाबाद संभाजीनगर में अक्षय तृतीया हेतु आना था। कारणवश वह तब न हो सका आज वह कार्यक्रम हो गया है। आचार्य तुलसी यहां पधारे और अब हमारा यहां आना हो गया। अभिव्यक्ति के क्रम में आचार्य श्री महाश्रमण अक्षय तृतीया प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष सुभाष जी नाहर ने अपने विचार रखे। तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने गीत का संगान किया। वर्षीतप के क्रम में मुनि अजीत कुमार जी, मुनि राजकुमार जी, मुनि लक्ष्य कुमार जी, मुनि चिन्मय कुमार जी एवं साध्वियों में साध्वी उज्ज्वल प्रभा जी, साध्वी सन्मति प्रभा जी, साध्वी रुचिर प्रभा जी ने वर्षीतप का पारणा किया।

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