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टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने चार चरण के मतदान के बाद क्यों बदली रणनीति

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मधुहीर राजस्थान

अशोक भाटिया,

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक,  एवं टिप्पणीकार

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि अगर लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में इंडिया ब्लॉक की सरकार बनती है तो उनकी पार्टी इस सरकार को बाहर से अपना समर्थन देगी।  गौर करने वाली बात ये है कि कुछ हफ्ते पहले ही ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में इंडिया  ब्लॉक से कोई गठबंधन नहीं है।तब  इंडिया ब्लॉक के तहत कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे पर असहमति जाहिर करने वालीं ममता बनर्जी ने कहा था मैंने विपक्षी गठबंधन इंडिया  ब्लॉक के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां तक कि गठबंधन का नाम भी मेरे द्वारा दिया गया था। लेकिन यहां पश्चिम बंगाल में, सीपीआई (एम) और कांग्रेस भाजपा के लिए काम कर रहे हैं।

गौरतलब है कि लोकसभा के चुनाव सात चरणों में हो रहे हैं। 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश, 40 सीटों वाले बिहार की ही तर्ज पर 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में भी इस बार लोकसभा चुनाव के सभी चरणों में मतदान होना है। सात में से चार चरण का मतदान हो चुका है। पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं, 24 सीटों के लिए वोटिंग होनी है और सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मतदान के चार पड़ाव पार होने के बाद चुनाव बाद की रणनीति को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का रुख स्पष्ट कर दिया है।

टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा है कि हम इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करेंगे, गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन करेंगे और दिल्ली में ऐसी सरकार बनाएंगे जिससे बंगाल के लोगों को कोई दिक्कत न हो। उन्होंने एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए ये भी कहा कि लेफ्ट-कांग्रेस पर विचार ना करें, बंगाल में ये हमारे साथ नहीं हैं। ये भाजपा के साथ हैं। ममता बनर्जी के इस बयान के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ममता बनर्जी को चार चरण के बाद इंडिया ब्लॉक के समर्थन की बात क्यों कहनी पड़ी?

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि यह राज्य का नहीं, देश की सरकार चुनने का चुनाव है। भाजपा के साथ सूबे के प्रो मोदी मतदाता इंटैक्ट हैं। एंटी भाजपा वोट के दो प्रमुख दावेदार हैं- ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन। ममता बनर्जी भी इस बात को बखूबी समझ रही हैं कि कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन जितनी मजबूती से लड़ेगा, टीएमसी को इसका उतना ही नुकसान उठाना पड़ेगा और इसीलिए वह इस तरह के बयान दे रही हैं। उनकी रणनीति एंटी भाजपा वोटर्स को यह संदेश देने की है कि भाजपा को रोकना है तो टीएमसी ही विकल्प है।

ममता के इस बयान के पीछे 2019 चुनाव के आंकड़े भी वजह बताए जा रहे हैं। पिछले आम चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर जीत-हार का अंतर 0।1 फीसदी से 8।5 फीसदी के बीच रहा था। क्लोज कॉन्टेस्ट वाली 18 में से दो सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी और बाकी 16 में से आठ-आठ सीटें टीएमसी और भाजपा ने जीती थीं। क्लोज कॉन्टेस्ट वाली इन सीटों पर तीन से चार फीसदी वोट स्विंग भी नतीजे बदल सकता है।

भाजपा की रणनीति सूबे में पीएम मोदी की लोकप्रियता कैश कराने के साथ ही भ्रष्टाचार और संदेशखाली जैसे मुद्दे पर आक्रामक प्रचार के जरिए मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है तो वहीं टीएमसी की कोशिश अपने वोटर्स को इंटैक्ट रखते हुए इसे और बढ़ाने की है। भाजपा का स्ट्रॉन्ग होल्ड माने जाने वाले उत्तर बंगाल में मतदान हो चुका है जहां पार्टी को आठ में से सात सीटों पर जीत मिली थी। अब साउथ बंगाल यानि कोलकाता और आसपास की सीटों पर वोटिंग की बारी है।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के मजबूती से उभरने तक सूबे की सियासत में टीएमसी और लेफ्ट-कांग्रेस ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे। दोनों ही दलों का वोट शेयर और सीटों का ग्राफ चुनाव दर चुनाव गिरता चला गया। ममता बनर्जी ने पहले कांग्रेस नेतृत्व की ओर से मान-मनौव्वल के बावजूद पश्चिम बंगाल में टीएमसी के अकेले लड़ने का ऐलान किया तो उसके पीछे भी अस्तित्व तलाश रहे इन दो दलों को फिर से खड़े होने के लिए अपनी जमीन नहीं देने की रणनीति, 2014 का प्रदर्शन दोहराने की कवायद से जोड़कर देखा गया।

अब अगर ममता बनर्जी यह कह रही हैं कि हम दिल्ली में समर्थन करेंगे तो इसके पीछे दिल्ली के लिए एक सॉफ्ट सिग्नल है। ममता और उनकी पार्टी के नेता शुरू से ही सूबे में कांग्रेस के साथ चुनाव नहीं लड़ पाने के लिए अधीर रंजन चौधरी पर हमलावर रहे हैं लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को लेकर आक्रामक बयानबाजियों से परहेज भी किया।

कांग्रेस नेतृत्व भी पश्चिम बंगाल में चुनाव को पार्टी के नजरिए से कितनी गंभीरता से ले रहा है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि चार चरण में सूबे की 18 सीटों पर मतदान हो गया लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की एक भी चुनावी रैली नहीं हुई। वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व भी भविष्य में टीएमसी से गठबंधन की संभावनाएं खुले रखना चाहता है। शायद यही वजह है कि पार्टी बंगाल की लड़ाई अधीर बनाम ममता ही रहने देने की रणनीति पर चल रही है।

पिछले चुनाव में टीएमसी, भाजपा  , कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां, सभी अलग-अलग चुनाव मैदान में थे। टीएमसी और भाजपा ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे तो वहीं कांग्रेस ने 40 और सीपीएम ने 31 सीटों पर। टीएमसी 43।7 फीसदी वोट शेयर के साथ 22 सीटें जीतने में सफल रही थी और 19 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे।

भाजपा को 40.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 18 सीटों पर जीत मिली थी और 22 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी। वोटों के लिहाज से देखें तो टीएमसी को कुल मिलाकर 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 वोट मिले थे और भाजपा को 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343। दोनों दलों के बीच वोटों के लिहाज से 17  लाख वोट का अंतर था और कांग्रेस-सीपीएम को ही मिला लें तो दोनों को 68 लाख वोट मिले थे।साल 2014 के चुनाव की बात करें तो टीएमसी को तब 39.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 34 सीटों पर जीत मिली थी। 9.7 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस को चार, सीपीएम को 23 फीसदी वोट शेयर के साथ दो और भाजपा को 17 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें मिली थीं। 2019 में टीएमसी को 2014 के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था।

उधर पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ फिर से कड़ी टिप्पणी कर रहे  है। ममता के इस बयान पर कि तृणमूल कांग्रेस इंडिया गठबंधन को बाहर से समर्थन देगी, अधीर रंजन चौधरी ने ममता को अवसरवादी राजनेता करार दिया। उन्होंने कहा कि ममता ने अपनी विश्वसनीयता गँवा दी है और उनका यह बयान अब राष्ट्रीय राजनीति में बने रहने की एक चाल है।कांग्रेस नेता की यह तीखी टिप्पणी ममता के इस दावे के एक दिन बाद आई है कि लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद इंडिया गठबंधन केंद्र में सरकार बनाएगा और टीएमसी उसे बाहर से समर्थन देगी।उन्होंने ममता बनर्जी को एक अवसरवादी राजनेता भी करार दिया, जिन्होंने बदलते राजनीतिक माहौल को महसूस करने के बाद अपना रुख बदल लिया। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘यह साफ़ दिख रहा है कि इंडिया गठबंधन आगे बढ़ रहा है और सरकार बनाने की कगार पर है और यही कारण है कि एक चतुर और अवसरवादी नेता के रूप में ममता बनर्जी ने पहले ही अपना समर्थन देने का फैसला किया है।’

उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी विश्वसनीयता गँवा दी है। वह इस वास्तविकता को समझ गई हैं कि मतदाता इंडिया गठबंधन की ओर बढ़ रहे हैं। उन्हें एहसास हो गया है कि वह राष्ट्रीय राजनीति में अलग-थलग पड़ गयी हैं। यह राष्ट्रीय राजनीति में बने रहने की एक चाल है।’इससे पहले दिन में मीडिया  से बात करते हुए चौधरी ने कहा था कि उन्हें ममता बनर्जी पर भरोसा नहीं है क्योंकि वह इंडिया गठबंधन से भाग गई हैं। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि टीएमसी प्रमुख लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि मुझे उन पर भरोसा नहीं है। वह गठबंधन छोड़कर भाग गयीं। वह भाजपा की ओर भी जा सकती हैं। वे कांग्रेस पार्टी को ख़त्म करने की बात कर रही थीं और कह रही थीं कि कांग्रेस को 40 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी। लेकिन अब वह कह रही हैं तो इसका मतलब है कि कांग्रेस पार्टी और गठबंधन सत्ता में आ रहे हैं।’

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