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मानवता के मसीहा महाश्रमण का जालना से मंगल प्रस्थान

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जालनावासियों से अर्पित किए कृतज्ञता के भाव 12 कि.मी. का विहार, शांतिदूत पहुंचे वाघ्रुल गांव में स्थित श्री रंगनाथ महाराज माध्यमिक विद्यालय भौतिक सुख क्षणिक व आध्यात्मिक सुख होता है स्थायी
मधुहीर राजस्थान

वाघ्रुल, जालना (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। महाराष्ट्र राज्य के जालना में सात दिवसीय प्रवास के दौरान जन्मोत्सव, पट्टोत्सव व 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव जैसे अविस्मरणीय व ऐतिहासिक आयोजनों की सुसम्पन्नता के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जालना के बाहरी भाग में स्थित समदड़िया फार्म से गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में मंगल प्रस्थान किया। जालनावासी अपने सुगुरु के चरणों में कृतज्ञता के भाव अर्पित कर रहे थे। समता के साधक आचार्यश्री सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। इसके पूर्व बुधवार की सायं ही शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्री गुरु गणेश तपोधाम परिसर से मंगल प्रस्थान कर दिया था और लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर समदड़िया फार्म में हाउस में पधार गए थे। आचार्यश्री की सहज कृपा को प्राप्त कर समदड़िया परिवार धन्यता की अनुभूति कर रहा था। जालना को तेरापंथ के इतिहास में अमर कर तेरापंथाधिशास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 753ए पर गतिमान थे। गुरुवार को प्रातःकाल से ही आसमान में छाए बादल भी मानों आचार्यश्री की विहार सेवा में लगे हुए थे। आचार्यश्री के गंतव्य स्थल तक पहुंचने तक प्रायः बादलों ने सूर्य को ढंके हुए थे। यह राजमार्ग भी पहाड़ी क्षेत्रों का अहसास करा रहा था। कहीं-कहीं हल्के आरोह-अवरोह के साथ घुमाव भी नजर आ रहा था। लगभग 12 किलोमीटर का विहार सुसम्पन्न कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी एकदिवसीय प्रवास हेतु वाघ्रुल में स्थित श्री रंगनाथ महाराज माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य अपने जीवन में सदैव सुखी रहना चाहता है। मनुष्य ही क्या, दुनिया के सभी प्राणी सुखी रहना चाहते हैं।

सुख को दो रूपों में जाना जा सकता है। एक तात्कालिक सुख और दूसरा स्थायी सुख। तात्कालिक सुख भौतिक पदार्थों व इन्द्रिय विषयक होते हैं। जैसे यात्रा करनी हो वाहन से सुख की अनुभूति हो सकती है, गर्मी हो, एसी, कूलर, पंखा चले तो सुख प्राप्त हो सकता है आदि-आदि। इस प्रकार तात्कालिक सुख को भौतिक सुख भी कह सकते हैं तथा स्थायी सुख को आध्यात्मिक सुख कह सकते हैं। भौतिक सुख परिस्थितिजन्य होता है और आध्यात्मिक सुख परिस्थितियों से परे होता है। आदमी को अपने जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए शास्त्र में बताया गया कि आदमी सुकुमारता को छोड़ कठोर जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में कभी कोई कठिनाई आ भी जाए तो उससे बिना घबराए, उसका सामना करने का प्रयास करना चाहिए, कठिनाइयों को झेलने का भी प्रयास करना चाहिए। दुःख से डरकर भागना नहीं, बल्कि दुःख का सामना करने का मनोबल रखने का प्रयास करना चाहिए। समस्याएं आएं तो उन्हें दूर करने का प्रयास होना चाहिए। समस्याएं दूर न हों तो उनके साथ सामंजस्य बिठा लेने का प्रयास करना चाहिए। दूसरी बात बताई गई कि आदमी को अपनी कामनाओं का दमन करने का प्रयास करना चाहिए। अनावश्यक रूप में की गई कामना यदि पूरी न हो तो वह भी मानसिक दुःख का कारण बन सकती है। इसलिए कामनों का दमन करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों के प्रति ईर्ष्या और द्वेष के भाव को भी छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। अवांछनीय राग और मोह से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। किसी चीज के प्रति बहुत ज्यादा मोह नहीं होना चाहिए। ये सभी जीवन को सुखी बनाने के प्रकार हैं। इस प्रकार आदमी को अपने जीवन को सुखी बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनिश्री ध्यानमूर्तिजी व पूर्व न्यायाधीश श्री गौतम चोरड़िया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।

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