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महाराष्ट्र राज्य में महातपस्वी की यात्रा व प्रवास को एक वर्ष हुए सम्पन्न

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ज्योतिचरण से आलोकित हुआ बिबी गांव का साहकार विद्या मंदिर स्थानीय जनता ने मानवता के मसीहा का किया अभिनंदन

मधुहिर राजस्थान

बिबी, बुलढाणा (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। 28 मई 2023 को महाराष्ट्र के समुद्र तटवर्ती क्षेत्र घोलवड़ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के  देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल रश्मियों से उदियमान हुए थे। मानों सकल महाराष्ट्र को आध्यात्मिक आलोक से भरने को उदित हुआ यह महासूर्य महाराष्ट्र की राजधानी, भारत में पश्चिमी देशों के लिए प्रवेश द्वार, फिल्मी दुनिया का घर, भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में विज्ञान मुम्बई महानगर जो दिन-रात भौतिक प्रकाश में जगमगाता रहता है, उसे आध्यात्मिकता से आलोकित कर दिया। पंचमासिक चतुर्मास, महानगर के विभिन्न उपनगरों में यात्रा-प्रवास, नवी मुम्बई में वर्ष 2024 का चतुर्मास, अनेक दीक्षा समारोह, जन्मोत्सव, पट्टोत्सव, 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव के समापन समारोह जैसे महनीय आयोजनों महाराष्ट्र के कोंकण, मराठवाड़ा के क्षेत्रों को पावन बनाने के उपरान्त वे देदीप्यमान महासूर्य, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में भीषण तपिश में भी विदर्भ क्षेत्र में अपनी अमृतवाणी से जनमानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान कर रहे हैं।

विदर्भ क्षेत्र की यात्रा में वर्तमान समय में महाराष्ट्र का बुलढाणा जिला ज्योतिचरण के स्पर्श पाकर धन्यता की अनुभूति कर रहा है। मंगलवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ मलकापुर पांग्रा से गतिमान हुए। सूर्य की तेजस्विता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। मार्ग के आसपास स्थित गांव के लोगों ने आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी बिबी गांव में पधारे। जहां के उत्साही जनता ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री बिबी गांव में स्थित साहकार विद्या मंदिर में पधारे। विद्या मंदिर परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी से आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि उत्तराध्ययन में मन को दुष्ट अश्व कहा गया है। मन को दुष्ट अश्व इसलिए कहा गया है कि मन चंचल होता है और इस मन में मलिन, बुरे विचार भी आते है। मलिन विचारों के कारण मन कहां से कहां चला जाता है। इसके वशीभूत होकर आदमी उन्मार्ग की दिशा में जा सकता है। मन में आए गलत विचार ही आदमी को न जाने कैसे-कैसे उत्पथ में ले जाने वाला बन सकता है। चोरी, हिंसा, हत्या आदि-आदि सभी उत्पथ की ओर ले जाने वाला दुष्ट मन रूपी अश्व ही होता है।

इस दुष्ट अश्व को नियंत्रित करने के लिए इस श्रुत व विवेक रूपी रस्सी की लगाम लगाने का प्रयास करना चाहिए। श्रुत व विवेक रूपी लगाम जब मन रूपी अश्व पर लग जाता है तो वह नियंत्रित हो सकता है। उस पर नियंत्रण पाने के उपरान्त धर्म, ध्यान, साधना, तपस्या के द्वारा मन रूपी दुष्ट अश्व को उत्तम अश्व बनाने का भी प्रयास किया जा सकता है, किन्तु इससे पहले मानव को ज्ञानाराधना करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान की आराधना हो और विवेकशीलता का विकास हो और इनके द्वारा मन रूपी अश्व नियंत्रित हो जाए तो फिर उसे उत्तम जाति का अश्व भी बनाया जा सकता है। ध्यान आदि के प्रयोग के द्वारा मन की चंचलता को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने बिबी गांव की जनता को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां के सभी जैन व अजैन जनता में अच्छी धार्मिकता बनी रहे। आचार्यश्री के आगमन से हर्षित श्रद्धालुओं ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। इस क्रम में श्री प्रमोद चण्डालिया, श्रीमती सुनीता कोटेचा, श्री संजीव रेदासनी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। निधि, नंदिनी व दर्शना बोरा ने स्वागत गीत का संगान किया।

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