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मानव जीवन को सफल-सुफल बनाने के छह सूत्र : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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13 कि.मी. का विहार कर युगप्रधान पहुंचे एकलारा में स्थित विवेकानंद विद्यालय
सफल मानव जीवन के सूत्रों को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित

मधुहीर राजस्थान

 एकलारा, बुलढाणा (महाराष्ट्र) (रमेश भट्ट)। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की यात्रा के दौरान वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बुलढाणा जिले की धरा को पावन बना रहे हैं। सोमवार को प्रातःकाल पेनटाकली से मंगल प्रस्थान किया। गर्मी के मौसम में आसमान में बादलों की आवाजाही के कारण धूप से थोड़ा बचाव अवश्य हो रहा था। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी एकलारा में स्थित विवेकानंद विद्यालय एवं कनिष्ठ महाविद्यालय परिसर में पधारे।

विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्रों में चौरासी लाख जीव योनियां बताई गई हैं। उनमें मनुष्य जन्म को दुर्लभ बताया गया है। लम्बेकाल तक भी प्राणियों को मनुष्य का जन्म प्राप्त नहीं होता है। कर्मों का विपाक होता है तो कितने-कितने जन्मों के बाद दुर्लभ मानव जीवन हमें उपलब्ध है। इसलिए यह जो महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ समय मिला है, उसे प्रभाव में नहीं गंवाना है और मूर्छा में सोए नहीं रहना चाहिए। मनुष्य जन्म कैसे सफल और सुफल हो सकता है, इसका प्रयास करना चाहिए। इस मानव जीवन में भगवद् भक्ति करने की बात बताई गई है। नाम स्मरण बहुत महत्त्वपूर्ण है। इधर-उधर के फालतू विचार आने से अच्छा है, आदमी जिनेश्वर देव, भगवान का स्मरण, भक्ति व पूजा करने का प्रयास हो। यह मानव जीवन को सफल बनाने का एक सूत्र है। भगवान का नाम बार-बार आने से विचार भी अच्छे हो सकते हैं। बच्चों के नाम दिए जाते हैं। नाम से भी अच्छे भाव आ सकते हैं। इस प्रकार आदमी भगवद् भक्ति से अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है।

मानव जीवन को सफल बनाने का दूसरा सूत्र बताया गया कि गुरु की पर्युपासना हो। गुरु की पर्युपासना से, निकट अथवा दूर से उपासना करने से भी कल्याण हो सकता है। गुरु का वंदन, सेवा, उपासना जितनी की जा सके, वह कल्याणकारी हो सकती है। तीसरी बात बताई गई कि प्राणियों के प्रति दया, अनुकंपा की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। कोई भी प्राणी छोटा हो या बड़ा, आदमी को दया, अनुकंपा की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। अपने भीतर अहिंसा को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। किसी पापी आदमी को पाप छुड़ाकर धर्म के रास्ते पर ला देना भी परोपकार का कार्य होता है। परोपकार से पुण्य की प्राप्ति होती है। चौथी बात बताई गई कि सुपात्र में दान देने का प्रयास करना चाहिए। शुद्ध साधु घर आ जाएं तो उनके सुपात्र दान देने का प्रयास करना चाहिए। दान देने का फल तो प्राप्त होता ही है। सुपात्र को दान देना धर्म का कारण बनता है। साधु को सिवाय किसी और को दान देने से वह कार्य दयालुता को उजागर करने वाला होता है। मित्र को कुछ देने से मित्रता प्रगाढ़ होती है। नौकरों को देने से उनमें सेवा की भावना का विकास होता है। राजा को देने से मान की वृद्धि होती है। दान कभी भी निष्फल नहीं जाता है। पांचवी बात बताई गई कि किसी के गुणों के प्रति अनुराग की भावना, प्रमोद भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। कुछ समय आगम, धर्म और शास्त्र की बातों को सुनने में भी समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। गुरुओं के मुख से आर्ष व शास्त्रवाणी सुनने से मानव जीवन सफल बन सकता है। सुनने से आदमी में सद्गुणों का विकास हो सकता है। इसलिए आदमी को अपने श्रवण शक्ति का अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार मानव जीवन को सफल-सुफल बनाया जा सकता है।

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