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12 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी महाश्रमण का चिखली में पावन पदार्पण

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चिखलीवासियों ने आचार्यश्री के अभिवादन में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति सायंकाल भी आचार्यश्री ने किया चार किलोमीटर का विहार

मधुहीर राजस्थान

चिखली, बुलढाणा (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। सोमवार को दोपहर बाद महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में मौसम ने करवट ली और तेज हवाओं के साथ बरसात प्रारम्भ हुई जो रूक-रूककर देर रात तक जारी रही। इस कारण भीषण गर्मी से राहत मिली। अचानक बदले इस मौसम का प्रभाव मंगलवार को देखने को मिला। बरसात तो नहीं हुई, किन्तु आसमान में छाए बादलों के कारण व एक दिन पूर्व हुए बरसात से मौसम मंगलवार को भी खुशनुमा रहा। ऐसे खुशनुमा मौसम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग चिखली की ओर मंगल प्रस्थान किया। एकलारा से संकरे मार्ग पर विहार के दौरान अनेक गांव के ग्रामीणों को आचार्यश्री के दर्शन व मंगल आशीर्वाद का अनायास लाभ प्राप्त हुआ। चिखली में एक भी तेरापंथी परिवार नहीं होने के बावजूद भी यहां निवासित जैन समाज व अन्य समाज के लोगों में अति उत्साह दिखाई दे रहा था। आचार्यश्री की अगवानी मंे लोग दूर-दूर तक पहुंचे हुए थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री ने जैसे ही चिखली में प्रवेश किया, आचार्यश्री के स्वागत में उत्सुक जनता ने भावभीना अभिनंदन किया। श्रद्धालुओं द्वारा किया जा रहा जयघोष वातावरण को भक्तिभाव से युक्त बना रहा था। आचार्यश्री चिखली में स्थित राधाबाई खेडेकर विद्यालय में पधारे।

विद्यालय परिसर में ही बने तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि संसार को भवसागर कहा गया है, जिसमें जीव जन्म-मृत्यु करते रहते हैं, जब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती है। इस संसार सागर को पार करने के लिए शरीर रूपी नौका का प्रयोग हो सकता है। वह भी शरीर रूपी नौका जो निश्छिद्र होती है, इसे धर्म और संयमी शरीर बनाने हो तो इस संसार रूपी भवसागर को तरा जा सकता है।

शरीर धर्म का एक साधन है। अनुकूल शरीर हो तो उससे साधना की जा सकती है। शास्त्रकार ने बताया कि जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, इन्द्रियां सशक्त रहे, तब तक इस शरीर से धर्म कर लेना चाहिए। धर्म की साधना अच्छी हो तो इस भव सागर को पार करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। आदमी को अपने शरीर को धर्म-साधना में उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। किसी का जितना आध्यात्मिक कल्याण हो सके, किसी की पवित्र सेवा हो सके, करने का प्रयास करना चाहिए। सक्षम शरीर से संयम और तप की साधना अच्छी हो इस संसार सागर को पार किया जा सकता है। इसलिए आदमी अपने शरीर का धर्म की साधना में बढ़िया उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने चिखलीवासियों को संयम के विकास करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के स्वागत में भारतीय जैन संघटना-बुलढाण के अध्यक्ष श्री अमित बेंगानी, श्रीमती निकीता कोठारी व श्रीमती अरुणा कोठारी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। चिखली जैन महिला मण्डल व बेंगानी परिवार की बहु-बेटियों ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने राधाबाई खेडेकर विद्यालय से मंगल प्रस्थान किया तथा लगभग चार किलोमीटर का विहार कर चिखली के बाहरी भाग में स्थित महात्मा ज्योतिबा फुले स्कूल में पधारे। जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।

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