मुख्यमुनि पद पर नियुक्ति के आठ वर्ष पूर्ण होने पर आचार्यश्री ने दिया आशीष मुनि निर्मलकुमारजी स्वामी की स्मृतिसभा का भी हुआ आयोजन\
मधुहीर राजस्थान
केळवद, बुलढाणा (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। जन-जन को सद्भावना नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बुधवार को प्रातः चिखली से मंगल प्रस्थान किया। दो दिन पूर्व बदले मौसम का असर आज भी प्रातःकाल स्पस्ट देखने को मिल रहा था। सुबह आसमान में छाए बादल से सूर्य ओझल था तो गर्मी का अहसास नहीं था और बरसात के कारण शीतल हवा लोगों को और अनुकूलता प्रदान कर रही थी। अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में समता भाव मंे रहने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री केळवद गांव स्थित ग्राम पंचायत कार्यालय में प्रवास हेतु पधारे।
पंचायत कार्यालय के निकट ही स्थित जिला परिषद मराठी उच्च प्राथमिक शाला में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र की वाणियां शिक्षाप्रद रूप में प्राप्त होती हैं। उनकी अपनी गरिमा होती है। आदमी के पास वाणी है। वह वाणी कल्याणी रहे, वह वाणी पापों का वहन करने वाली न बने, ऐसा प्रयास करना वांछनीय है। वाणी से आदमी सत्य भी बोल सकता है और झूठ भी बोल सकता है। वाणी से आदमी प्रिय और कटु भी बोल सकता है। आदमी न प्रिय और न कटु ऐसा सामान्य वचन का प्रयोग भी कर सकता है। इरादतन रूप में जानबूझकर झूठ बोलना गलत बात होती है। अज्ञानतावश कोई असत्य वचन निकले तो वह सामान्य बात हो सकती है। कभी साधु से सामान्यतः कोई बात गलत निकल सकती है तो आदमी का भला क्या कहना, किन्तु इरादतन रूप में बोला गया झूठ पापकर्म का बंध कराने वाला हो सकता है। इरादतन झूठ बोलने के पीछे भी उद्देश्य क्या है, वह विशेष ध्यातव्य होता है। आदमी को किसी को फंसाने के लिए, किसी का अहित करने के लिए झूठ बोला जा सकता है।
स्वयं को बचाने के लिए आदि अनेक कारणों से आदमी मृषावाद का प्रयोग कर सकता है। भीतर में राग-द्वेष की भावना के कारण भी आदमी झूठ बोल सकता है। आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि वैसा झूठ जिसके बोलने हिंसा, किसी का अहित हो, किसी को कष्ट पड़े, ऐसे झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। वह सत्य भी बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए, जिससे किसी के प्राणों की हिंसा हो जाए। आज ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी है। यह कोई संयोग है कि कुछ दिन पहले यानी वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का मनोनयन दिवस आया गया। उसके कुछ दिन बाद साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा का ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी साध्वीवर्या पद नियुक्ति दिवस और उसके दो दिन बाद ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी यानी आज मुख्यमुनि महावीरकुमार का मुख्यमुनि पद पर नियुक्ति दिवस आ गया है। मुख्यमुनि को इस पद पर आठ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं।
मुख्यमुनि की साधना, श्रम आदि मन की निर्मलता का विकास होता रहे। सेवा करने की भावना पुष्ट हो, चित्त समाधि, शांति रहे। शांतिमय जीवन रहे, दूसरों की जितनी आध्यात्मिक-धार्मिक सेवा होता रहे। अपने जीवन का खूब विकास करते रहें और चित्त में समाधि रहे। किसी भी स्थिति-परिस्थिति में भी मन में दुःख न हो, ऐसी साधना पुष्ट रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ मंे हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को विशेष प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। तदुपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में मुनि निर्मलकुमारजी की स्मृतिसभा का भी आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने उनके संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी प्रदान करते हुए उनकी आत्मा के कल्याण के लिए मध्यस्थ भाव से कामना करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। मुख्यमुनिश्री, साध्वीप्रमुखाजी, मुनि विश्रुतकुमारजी, मुनि योगेशकुमारजी व मुनि दिनेशकुमारजी ने उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की।
