राजूर के रेणुकादेवी माध्यमिक विद्यालय पूज्यचरणों से बना पावन
मधुहीर राजस्थान
राजूर, बुलढाणा (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। ध्यान अध्यात्म साधना का एक अंग है। ध्यान पापकर्म बंध का भी एक साधन बन सकता है। ध्यान शब्द का मूल अर्थ चिंतन करना। एकाग्र चिंतन ही ध्यान है। एक आलम्बन पर मन को केन्द्रित कर देना ध्यान होता है। एकाग्रता शुद्ध है तो धर्म का अर्जन कराने वाला धर्म का लाभ देने वाला व यदि एकाग्रता अशुद्ध है तो वह पाप कर्म का बंध कराने वाला हो सकता है। शरीर में जो स्थान शीर्ष का और वृक्ष में जो स्थान मूल का है, वही स्थान में साधु धर्म में ध्यान का होता है। जैन वाङ्मय में चार प्रकार के ध्यान बताए गए हैं- आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान। आर्त और रौद्र ध्यान अशुभ तथा धर्म और शुक्ल ध्यान शुभ होते हैं। आदमी चित्त अच्छे कार्यों में रम जाए। जप करते समय, प्रतिक्रमण करते समय, चलते समय भी अनेकानेक विचार आते रहते हैं। मन इतना गतिशील होता है कि क्षण में कितना-कितना विचार कर लेता है। मन की दो कमियां हैं- चंचलता और मलिनता। मन तो विकास का भी द्योतक होता है। पांच इन्द्रियां और मन की उपलब्धता बहुत बड़ी बात होती है। जिसके पास मन होता है, वह प्राणी ही उत्कृष्ट धर्म की साधना कर सकता है। ज्यादा पाप भी मन वाले ही प्राणी करते हैं। आदमी यह प्रयास करे कि मन ज्यादा पापकारी प्रवृत्तियों में न जाए।
ध्यान-साधना के रूप में कितनी पद्धतियां चलती हैं। हमारे यहां प्रेक्षाध्यान चलता है। अब तो उसे प्रारम्भ हुए पचास वर्षों की बात है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कितने-कितने क्लास लिए। आदमी को थोड़ा समय निकालकर ध्यान करने का प्रयास करना चाहिए। यदि समय नहीं है तो आदमी अपने कार्य के साथ भी ध्यान को जोड़ सकता है। आदमी विचारों के प्रवाह को रोकने का प्रयास करना चाहिए। ध्यान से चलना, ध्यान से सुनना, ध्यान से बोलना, ध्यान से भोजन करना अर्थात् प्रत्येक कार्य में एकाग्रता रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ ध्यान को जोड़ा जा सकता है। दैनन्दिन जीवन के साथ ध्यान को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने राजूर में स्थित रेणुकादेवी माध्यमिक विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की। इससे पूर्व महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को प्रातः बुलढाणा जिला मुख्यालय से मंगल प्रस्थान किया। बुलढाणावासी अपने आराध्य के श्रीचरणों में अपने कृतज्ञ भाव अर्पित कर रहे थे। सभी पर आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। आज का विहार मार्ग प्रायः आरोह से युक्त रहा। ऐसे में अपनी गति को नियंत्रित करने में थोड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। विहार के दौरान मौसम की अनुकूलता बरकरार थी। इसलिए भी लोग राहत महसूस कर रहे थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने एकदिवसी प्रवास के लिए राजूर में स्थित रेणुकादेवी माध्यमिक विद्यालय में पधारे।
