लघुकथा
भरत कोराणा
अपने पापा के साथ तपती दुपहरी में शहर से आने वाली बस से भरी गर्मी को ओढ़ता हुआ नन्हा चेतन हॉस्टल से गांव आया । शहरी वातावरण से परिचित चेतन इस गर्मी में धूप निवारण का प्रबंध करना चाह रहा था । जब भी चेतन दादा के पास बैठता तो उसे पेड़ पौधों हेतु हुए आंदोलन की कहानियां दादा अक्सर सुनाया करते थे । बचपन में अपने दादा की वसीयत रूपी सीख में उसे हमेशा पर्यावरण की सीख मिली थी ।
मां ! मुझे दादा की अलमारी से गुलमोहर के बीज दो , मैं उसे अपने आंगन के कोने में लगाना चाहता हुं।
मां अपने नन्हे कुमार की सोच के प्रति गदगद होकर सोच रही थी की अभी इसकी उम्र ही क्या है ?
तीसरी कक्षा का यह चेतन पर्यावरण के प्रति कितना चिंतित है ।
मां ने बड़े जतन से अलमारी से गुलमोहर के बीज दिए । बड़ी बहन दिक्षिता ने पापा द्वारा खोदे गड्डे में खाद डाली , बड़ी बहन जिया, नीकू और जाह्नवी ने टंकी से कलशा भरकर पानी दिया ।
चेतन ने अपने हाथों गुलमोहर के बीज बो दिए ।
आज परिवार में हर्षोल्लास था , सबके चेहरे पर प्रसन्नता थी क्युकी सदियों से चली आ रही पर्यावरण संरक्षण रूपी पारिवारिक मुहिम का हिस्सा आज चेतन बना था।
शाम को दादा घर आए तो चेतन बोला – दादाजी ! आज मैंने आपके लिए ऐसा जुगाड किया है की अपने घर पर ए.सी. की हवा आयेगी ।
दादा अपने छोटे पोते की ऐसी बातों से मुस्कराते हुए बोले – ऐसा क्या किया है तूने ?
तभी चेतन आंगन के कोने में दादा को अंगुली पकड़कर ले गया और वो गड्ढा दिखाया । गड्ढे के पास गुलमोहर के बीजों की छमिया पड़ी थी और अरविंद बार बार उसकी मिट्टी से गड्ढे को व्यवस्थित कर रहा था ।
दादाजी बड़े प्रसन्न थे की परिवार के नन्हे बच्चे पर्यावरण हेतु इतने चिंतित है तो इतनी सरकारी योजनाएं , खादी पहने सफेदपोश नेताओं की बोलियां , दफ्तरों में बैठे कर्मचारी पर्यावरण संरक्षण की बातें करते हैं पर व्यवहारिक रूप क्यों नही देते ? यह सोचने का विषय है ।
मौलिक कहानीकार
भाद्राजून , जिला जालोर , राजस्थान
