14 कि.मी. से भी अधिक का विहार कर महातपस्वी ने जलगांव जिले की सीमा में हुए प्रविष्ट सत्संगत से हो सकता है मानव जीवन का कल्याण : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
मधुहीर राजस्थान
देवलगांव (गुजरी), जलगांव (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। विगत एक वर्षों से भी अधिक समय से महाराष्ट्र राज्य की सीमा में गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को विदर्भ क्षेत्र की यात्रा को सुसम्पन्न कर खान्देश की सीमा में पावन प्रवेश किया। इसके साथ ही गत कई दिनों से बुलढाणा जिले की सीमा भी अतिक्रांत हुई और जलगांव जिले की सीमा ने पूज्यचरणों का स्पर्श पाकर स्वयं को धन्य महसूस किया। इस प्रकार आचार्यश्री ने भौगोलिक दृष्टिकोण से महाराष्ट्र को मराठवाड़ा, कोंकण, विदर्भ आदि क्षेत्रों की यात्रा कर खान्देश क्षेत्र की सीमा में पावन प्रवेश किया। मानवता के मसीहा के इतनी विस्तारित यात्रा ने मानों महाराष्ट्र के कण-कण को आध्यात्मिकता से भावित कर दिया है। रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुलढाणा जिले के श्री गजानन महाराज जन्मस्थान से मंगल प्रस्थान किया। आरोह-अवरोह से युक्त और घुमावदार पहाड़ी मार्ग पर निरंतर विहार करते हुए विदर्भ क्षेत्र के बुलढाणा जिले की सीमा को अतिक्रांत कर खान्देश क्षेत्र के जलगांव जिले की सीमा में पावन प्रवेश किया। लगभग चौदह किलोमीटर से अधिक का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री देवलगांव (गुजरी) में स्थित जिला पंचायत मराठी प्राथमिकशाला में पधारे।
जहां स्थानीय लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। ग्रामवासियों की ओर से विशेष बात यह रही कि आचार्यश्री के आगमन की सूचना पर देवलगांव (गुजरी) में एक दिन के मांस की दुकानों को बंद रखा गया। विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा के हित के लिए ज्ञान का बहुत महत्त्व होता है। यदि सद्ज्ञान हो जाए तो आदमी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है तथा कभी और अधिक विकास करता हुआ मुक्ति के पथ पर भी अग्रसर हो सकता है। सद्ज्ञान की प्राप्ति संतों की संगति करने की बात बताई गई है। कंचन-कामिनी के त्यागी संतों की कुछ क्षण की संगति भी आदमी के जीवन की दशा और दिशा को बदल देने वाली हो सकती है। संतों की वाणी से सद्ज्ञान की प्राप्ति हो और इसके उपरान्त सद्चरित्र का निर्माण हो जाए तो जीवन का कल्याण भी संभव हो सकता है, कभी इतना भी विकास हो जाए कि मन में वैराग्य भावना भी जागृत हो जाए और मानव संसार सागर से तरने के लिए साधुता के पथ पर भी अग्रसर हो सकता है। इसलिए मानव जीवन में सत्संगति का बहुत महत्त्व है। सत्संगति से अच्छी प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन को धर्म और कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी को पापाचार को छोड़कर धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि यहां के लोगों में खूब धार्मिक भावना का विकास होता रहे। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय सरपंच श्री जोगेन्द्र सिंह (नीतू सिंह) ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
