श्रीमति बुद्धि पटेल
प्रतिवर्ष 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है ताकि समाज, नागरिकों को बाल श्रम के विषय में जागरूक किया जा सके। इस वर्ष बाल श्रम निषेध दिवस की थीम- ’’अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करेंः बाल श्रम समाप्त करें’’ रखी गई है। आजादी के इतने वर्षों के अंतराल के बाद भी बाल श्रम होना सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है, इससे न केवल भावी भविष्य अंधकार में पड़ता है बल्कि हम असंख्य प्रतिभाओं से भी वंचित रह जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार दुनिया भर में 152 बिलियन से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं एवं वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में भी 10 बिलियन बाल श्रमिक है। बाल श्रम के कारण बच्चे अपने बचपन, खेलकूद और प्राथमिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। आज हर बड़े शहर एवं कस्बे में हमें आसानी से प्रतिष्ठानों, दुकानों पर काम करते हुए बाल श्रमिक नजर आ जाते हैं, लेकिन कोई भी उन बाल श्रमिकों के अधिकार की आवाज नहीं उठा पाता। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार बाल श्रम निषेध और वे नियमन अधिनियम के तहत केवल 982 मामले सामने आए हैं जबकि असल में देखा जाए तो बाल श्रमिकों की संख्या भारत देश में लाखों में है।
बाल श्रम के कारणों का अध्ययन करें तो गरीबी व बढ़ती जनसंख्या सबसे प्रमुख कारण हैं, कई माता-पिता अधिक संताने होने व आमदनी कम होने के कारण मजबूरी में अपने बच्चों को काम पर भेजना शुरू कर देते हैं क्योंकि उनके सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा होता है, ज्यादा बच्चे होने के कारण ना तो वे उन्हें अच्छी शिक्षा दे पाते हैं ना ही अच्छा जीवन। आदिवासी एवं देहात ग्रामीण अंचलों में अकाल, सूखा, प्राकृतिक आपदा एवं अन्य के कारण से जब लोगों की आमदनी का जरिया नहीं रहता है तो वह अपने लड़के-लड़कियों को मजबूरी में बाल श्रमिक के रूप में शहरों की तरफ भेज देते हैं इसमें दोष केवल उनके माता-पिता का ही नहीं होता बल्कि कुछ दलाल एवं ठेकेदारी इसी ताक में रहते हैं कि किस परिवार को संकट का सामना करना पड़ रहा है वह उस परिवार को पहले बहला-फुसलाकर कर बच्चों की अच्छे जीवन का झांसा देकर बाल श्रमिक के रूप में उनको ले आते हैं, शहर के होटल, रेस्टोरेंट, चाय की दुकानों पर यह बच्चे देखे जा सकते हैं जो पढ़ने खेलने कूदने की उम्र में परिवार की आजीविका का जरिया बनते हैं। बाल श्रमिक के रूप में बच्चे कारखाने, बीड़ी, चूड़ी, ईंट के भट्टे, माचिस, जरी व कढ़ाई सहित अन्य उद्योगों में काम करते हैं जिससे उनके स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा प्रतिकूल असर पड़ता है, इसके अतिरिक्त यह बच्चे संपन्न एवं धनात्मक वर्ग के घरों में, दुकानों पर, भोजनालय में काम करते हैं इन जगहों पर इन बच्चों के साथ असभ्य व्यवहार भी किया जाता है चाहे उनके मालिक हो या ग्राहक इन बच्चों के साथ गाली-गलौज दुर्व्यवहार किया जाता है इस कारण इनके कोमल मन पर बहुत गहरा असर पड़ता है कम उम्र में ही यह बच्चे अवसाद जैसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं यहां पर यह बच्चे नशे की प्रवृत्ति में भी लीन हो जाते हैं क्योंकि उनके परिवार का कोई व्यक्ति उनके पास नहीं होता जो इन्हें सही गलत की राह दिखा सके, तमाम बड़े शहरों के बस स्टैंड, रेल्वे स्टेशनों के बाहर आप यदि नजर डालें तो आप पाएंगे कि छोटे-छोटे बच्चे नशेड़ी बन चुके हैं और वहां विचरण करते नजर आते हैं, कुछ और असामाजिक तत्व इन बच्चों से नशा करवा कर गैर कानूनी कार्य भी करवाते हैं।
बच्चे अपने अधिकारों की आवाज नहीं उठा पाते, उनके काम करने की क्षमता ज्यादा होती है और वह बड़े की अपेक्षा ज्यादा लग्न व एकाग्रता से काम करते हैं व उन्हें वेतन भी काम देना पड़ता है इस कारण कुछ लोगों की पहली पसंद बाल श्रमिक होते हैं।
संविधान प्रदत्त कानून की बात करें तो बाल मजदूरी निषेध व नियम अधिनियम 1986 (संशोधन अधिनियम 2016), किशोर न्याय (देखभाल व संरक्षण) अधिनियम, 2000 सहित कई कानून है जिसमें बाल श्रम अपराध है और बाल श्रम पकड़े जाने पर गंभीर सजा का प्रावधान है किंतु जागरूकता के अभाव में इन अधिनियमों एवं कानूनों की पालना नहीं हो पा रही है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राज्य स्तरीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग एवं जिला स्तरीय बाल अधिकार समितियां बनी हुई है फिर भी एक व्यापक पैमाने पर बाल श्रम होना सभी नागरिकों के लिए गंभीर चिंता का विषय है, सभी को मिलकर सोचना होगा कि इन बाल श्रमिकों का कल्याण कैसे हो क्योंकि कहीं ना कहीं इन बाल श्रमिकों में से ही कुछ बच्चे अपराध का रास्ता भी पकड़ लेते हैं। बाल श्रमिकों के अधिकार एवं उनके कल्याण के लिए भारत में यूनिसेफ, चाइल्ड राइट, बचपन बचाओ आंदोलन, चाइल्ड लाइन सहित कई संस्थाएं कार्यरत है। जिला स्तर पर चाइल्ड लाइन हेल्पलाइन सेंटर बने हुए हैं जिसमें श्रम विभाग पुलिस मानव तस्करी विभाग गैर सरकारी संगठन बाल अधिकार संरक्षण आयोग के संयुक्त तत्वाधान में एक टीम बनी होती है जो बाल श्रम एवं बंधा बाल श्रमिकों के उत्थान के लिए काम करती है जिससे संपर्क कर बाल श्रमिकों और बच्चों पर हो रहे अत्याचारों की सूचना देकर उन्हें बचाया जा सकता है। कैलाश सत्यार्थी को बच्चों के अधिकारों पर काम करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया कैलाश सत्यार्थी और उनके सहयोगियों ने करीब 83 हजार बच्चों को बाल श्रम एवं गुलामी से मुक्त कराया लेकिन उनकी यह मुहिम थम नहीं जाती है हमें भी इस मुहिम में भागीदार होना होगा तभी बाल श्रम से मुक्ति पाई जा सकती है। बाल श्रम मुक्ति की मुहिम के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए यूनिसेफ इंडिया ने फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर खान को मई, 2024 में फॉरएवरीचाईल्ड एम्बेसडर बनाया है एवं गोरांशी शर्मा, कार्तिक वर्मा, नाहिद आफरीन व विनिशा उमाशंकर को बाल अधिकार एडवोकेट के रूप में मान्यता प्रदान की है ताकि जागरूकता बढाई जा सके।
एक सभ्य समाज के नागरिक के रूप में हमारा यह कर्तव्य है कि हम इस देश के बच्चों को अच्छा भविष्य प्रदान करें उन्हें शिक्षा स्वास्थ्य खेलकूद के पर्याप्त अवसर प्रदान करें ताकि आने वाले समय में वे अपनी प्रतिभा ज्ञान एवं कौशल से इस देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान प्रदान करें।
