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मालदीव के बिगड़े संबंध सुधरने की संभावना बढ़ी 

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अशोक भाटिया,

(वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, एवं टिप्पणीकार)

हाल ही में मालदीव के  राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को प्रधानमंत्री  मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने पर उनके ही सबसे बड़े विरोधी का भी  समर्थन मिला है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कहा, ‘भारत-मालदीव संबंधों के वर्तमान संभावनाओं को देखते हुए उनकी पार्टी डेमोक्रेट्स मोहम्मद मुइज्जू का समर्थन करती है।’ मुइज्जू 9 जून को भारत के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए नई दिल्ली पहुंचे थे।

राष्ट्रपति बनने के बाद मोहम्मद मुइज्जू पहली बार भारत यात्रा पर आए थे। मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास आ गई थी, लेकिन अब मुइज्जू को दिल्ली  दौरे के बाद एक बार  फिर नए रिश्तों को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। मालदीव के मीडिया पोर्टल सन ने मोहम्मद नशीद के हवाले से कहा कि प्रत्येक चुनाव में देश की विदेश नीति बदल देना मालदीव के लिए लोगों के लिए बड़ा नुकसान है।

मोहम्ममद नशीद की टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब भारत-मालदीव के रिश्तों में सुधार होता दिख रहा है। नशीद ने भारतीय प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में मोहम्मद मुइज्जू के शामिल होने का स्वागत किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और प्रधानमंत्री मोदी को उनके धैर्य और दूरदर्शिता के लिए बधाई दी है। उन्होंने मुइज्जू के इस फैसले को भारत के प्रति मालदीव की विदेश नीति में सुधार की संभावना वाला बताया है। इसके साथ ही अब मालदीव के संबंध चीन के साथ कैसे होंगे इस बात पर विश्लेषकों की नजर है।

मोहम्मद नशीद ने कहा, मालदीव के लोग इस बात से काफी खुश हैं कि भारत के प्रधानमंत्री  मोदी के ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह को देखने के लिए उनके राष्ट्रपति नई दिल्ली में मौजूद रहे। नशीद ने विपक्ष में रहते हुए मोहम्मद मुइज्जू के ‘इंडिया आउट कैंपेन’ का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने मुइज्जू के इस कदम को मालदीव के लोगों के लिए भारत खिलाफ नफरत फैलाने वाला बताया था। दरअसल, साल 2008 से 2012 के बीच मालदीव के राष्ट्रपति रहे मोहम्मद नशीद ने भारत के साथ गहरा संबंध बनाए रखा था।

गौरतलब है कि राष्ट्रपति मुइज्जू के पदभार संभालने के कुछ समय बाद ही भारत और मालदीव के बीच संबंध खराब हो गए थे। राष्ट्रपति चुनाव में ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाने वाले मुइज्जू ने सत्ता संभालने के बाद मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों की वापसी पर जोर दिया, जो दो हेलिकॉप्टर और एक डोर्नियर विमान को संचालित करने के लिए वहां मौजूद थे। बाद में इन सैनिकों की जगह भारत ने नागरिक कर्मियों की तैनाती की। भारत के बजाय राष्ट्रपति मुइज्जू ने चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए। इसी साल जनवरी में अपनी पहली चीन यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के खिलाफ जुबानी हमलों में जहर उगला था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह के लिए निमंत्रण मिलने के बाद मुइज्जू ने कहा था  कि वे भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाना चाहते हैं और प्रधानमंत्री  मोदी के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। एक  साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि यात्रा मालदीव के लिए बहुत सफल रही। उन्होंने प्रधानमंत्री  मोदी के प्रति आभार जताया। राष्ट्रपति मुइज्जू ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) और (विदेश मंत्री) एस जयशंकर के साथ उच्च स्तरीय बैठकें करने के लिए भी आभारी हूं। मुझे विश्वास है कि मजबूत द्विपक्षीय संबंध भविष्य में मालदीव के लिए आकांक्षाओं को और बढ़ाएंगे।

भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा को मालदीव और क्षेत्र के लिए सफलता बताते हुए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने मंगलवार को कहा कि ईश्वर की इच्छा से दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों से मालदीव के लोगों के लिए समृद्धि बढ़ेगी। चीन समर्थक झुकाव के लिए जाने जाने वाले मुइज्जू ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी मंत्रिपरिषद के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए अपनी पहली भारत यात्रा संपन्न होने के बाद सरकारी मीडिया पीएसएम से कहा, यह यात्रा मालदीव और क्षेत्र के लिए भी सफल रही है। मोदी ने रविवार को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस समारोह में भारत के पड़ोस और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया।

मुइज्जू ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का निमंत्रण पाकर खुशी हुई और वह इस कार्यक्रम में शामिल होकर भी ‘‘उतने ही खुश’’ हैं। उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) और एस जयशंकर (विदेश मंत्री) के साथ उच्चस्तरीय बैठकों के लिए भी आभारी हूं। मुझे विश्वास है कि मजबूत द्विपक्षीय संबंध भविष्य में मालदीव के लिए आकांक्षाओं को और मजबूती देंगे।’ मुइज्जू ने कहा, ईश्वर की इच्छा से, दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों के परिणामस्वरूप मालदीव और मालदीववासियों के लिए समान रूप से समृद्धि बढ़ेगी।

इससे पहले दिन में, विदेश मंत्रालय ने यहां एक बयान में कहा था कि  राष्ट्रपति (मुइज्जू) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण पर भारत सरकार के प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत की यात्रा की। इसमें कहा गया, यात्रा के दौरान राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारत की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू द्वारा गणमान्य अतिथियों के सम्मान में आयोजित भोज में भाग लिया। बयान में बताया  गया कि दोनों राष्ट्रपतियों ने एक बैठक भी की, जिसमें उन्होंने मालदीव और भारत के बीच द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा की। इसमें कहा गया कि मुर्मू ने मालदीव की नयी सरकार और लोगों को शुभकामनाएं दीं। बयान में कहा गया, ‘‘उन्होंने (मुर्मू) विश्वास व्यक्त किया कि मुइज्जू के नेतृत्व में द्वीप राष्ट्र समृद्धि और विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा।’’ नयी  दिल्ली स्थित राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि मुर्मू ने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में भारत-मालदीव के संबंध मजबूत होंगे।

दरअसल भारत और मालदीव के बीच कूटनीतिक विवाद सोशल मीडिया पर शुरू हुआ और दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों तक पहुंच गया। यह सब 4 जनवरी को शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप का दौरा किया और खूबसूरत द्वीप की तस्वीरें पोस्ट कीं। हालांकि प्रधानमंत्री  मोदी ने अपने पोस्ट में कहीं भी मालदीव का जिक्र नहीं किया था, लेकिन सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया कि जब भारत में इतनी खूबसूरती है तो कोई मालदीव क्यों जाए।

इसका एक संदर्भ भी है। सरकार में बदलाव के कारण मालदीव में भारत विरोधी गुट सत्ता में आ गया। राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को चीन समर्थक व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के साथ मिलकर द्वीपीय राज्य में चुनावों के दौरान ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाया था।सोशल मीडिया पर एक बड़े युद्ध के चलते मालदीव के तीन उप-मंत्रियों और कुछ सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ़ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था । ट्रोल्स के बीच चल रही जंग कूटनीतिक स्थिति में बदल गई। भारत को इसका जवाब देना पड़ा था ।भारत में मालदीव के उच्चायुक्त इब्राहिम शाहीब को विदेश मंत्रालय में बुलाया गया और उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मालदीव के कुछ मंत्रियों की टिप्पणियों पर भारत की गंभीर चिंताओं से अवगत कराया गया था ।

मुइज़्ज़ू प्रशासन अपनी ओर से दोनों पक्षों – चीन और भारत – को साधने की कोशिश कर रहा है। सावधानी बरतते हुए मुइज़्ज़ू प्रशासन ने तीन अधिकारियों को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया। बताया जाता है कि उसी समय  कई मालदीववासी इस घटनाक्रम से नाखुश थे ।उस समय छुट्टियों के लिए माले आए भारतीय पर्यटकों से बात करते हुए मीडिया  को जो एहसास हुआ, वह यह था कि ज़्यादातर मालदीवियों की तरह वे भी दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास नहीं चाहते। एक भारतीय पर्यटक ने कहा था इस विवाद से मालदीव में पर्यटन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे लक्षद्वीप में रोज़गार बढ़ सकता है।

एक अन्य प्रवासी ने प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप यात्रा पर बात करते हुए कहा था कि यह यात्रा विवाद पैदा करने के लिए नहीं थी। वह भारत को बढ़ावा दे रहे थे और मालदीव का अपना आकर्षण है। एक दूसरे की जगह नहीं ले सकता।मालदीव में विपक्ष ने इस विवाद पर वर्तमान सरकार को आड़े हाथों लिया था तथा संसद से विदेश मंत्री और उप मंत्रियों को बुलाने की मांग की थी ।

विपक्षी एमडीपी के नेता और सांसद मीकाईल अहमद नसीम, जिन्होंने सम्मन के साथ संसद का दरवाजा खटखटाया, ने कहा था कि उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि सरकार द्वारा इसे उतनी गंभीरता से लिया जा रहा है, जितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि हम, मालदीव के लोग, इस मुद्दे को हल करने के लिए मालदीव सरकार क्या करेगी, इस बारे में एक मजबूत और अधिक निश्चित जवाब के हकदार हैं।

सोशल मीडिया पर #BoycottMaldives या #ExploreIndia जैसे हैशटैग के साथ आह्वान किया गया, लेकिन बाद वाला पहले वाले की जगह नहीं ले सकता या इसके विपरीत। भारत-मालदीव संबंध दोनों देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहे  हैं। संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं, लेकिन भारत ने कभी भी अपने नजदीकी पड़ोसी के रणनीतिक महत्व पर ध्यान नहीं खोया है।

वहां के लोगों  को याद होगा कि राजनीतिक रूप से, भारत मालदीव की स्वतंत्रता को मान्यता देने और राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था। पिछले कुछ वर्षों में, ये संबंध आम तौर पर घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण रहे हैं। हालाँकि, इनमें उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ है, खासकर मालदीव की उन सरकारों के तहत जो चीन की ओर झुकी हुई थीं, जैसे कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के समय। अब बदलते समय व बदलती जरूरतों के अनुसार दोनों देशों की नजदीकी शुभ संकेत ही माना जा सकता है।

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