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गीता के अठारह अध्याय होते है तीन भागों में विभाजित

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मधुहीर राजस्थान

जैसलमेर। स्थानीय गीता आश्रम में मद भागवत गीता पर प्रवचन का आयोजन किया गया सर्व प्रथम श्रीकृष्ण की तस्वीर के समक्ष मुख्य वक्ता रिटायर्ड आईएएस श्यामसुन्दर बिस्सा, राजेंद्र व्यास, राधेश्याम कल्ला द्वारा ज्योत प्रजवलित कर धूप बती कर पूजा अर्चना की गई। प्रवचन के मुख्य वक्ता रिटायर्ड आईएएस श्यामसुन्दर बिस्सा ने बताया कि उनकी उपमा गीता के अठारह अध्यायों को तीन भागों में विभाजित करती है उन्होंने कहा कि हैं कि पहले छह मुख्य रूप से कर्म, या “क्रियाओं” से संबंधित हैं जो व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाते हैं, और अंतिम छह ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो ईश्वर की खोज में “ज्ञान” का उपयोग करते है। बिस्सा ने बताया कि आप वर्तमान में एक मानव शरीर में एक आत्मा हैं।

आज इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए आपने लाखों अन्य भौतिक शरीरों में यात्रा की है। और यदि, आपके पास पूरी करने के लिए और भी भौतिक इच्छाएँ हैं, तो आप भौतिक अनुभव का स्वाद लेते हुए इस भौतिक दुनिया में और भी अधिक यात्रा करेंगे।आपको मन, बुद्धि और अहंकार से संपन्न किया गया है – ये तीनों हमेशा आपके साथ रहते हैं और कभी नहीं मरते। और ईश्वर का एक रूप है जो भौतिक ब्रह्मांड में यात्रा करते समय भी लगातार आपका साथी है। यह रूप जिसे परमात्मा के रूप में जाना जाता है, कभी भी आपका साथ नहीं छोड़ता। और वह लगातार इस बात का इंतज़ार कर रहा है कि आप उसकी ओर देखें। बिस्सा ने बताया कि श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान की अपेक्षा कर्म मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं क्योंकि कर्म लोक कल्याण के साथ आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले पथिक को प्रभु की प्राप्ति भी करा देता है। इस परम योग का उपदेश प्रारंभ करने से पूर्व श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हे अर्जुन! अब मैं तुमको वह योग बताता हूं जिस पर चलकर तुम सारे कर्म बंधनों को तोड़ दोगे और इसकी विशेषता यह है कि इसका थोड़ा-सा भी अनुशीलन महान भय से बचा लेता है।

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