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आज से शुरू हुआ चातुर्मास, चार महीनों तक इस तरह से करें पूजा, मिलेगा सुफल

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मधुहीर राजस्थान

जयपुर: हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक चातुर्मास बुधवार से शुरू हो रहा है. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है. इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी या देवशयनी एकादशी भी कहते हैं. मान्यता है कि इस एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं. इसलिए इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते हैं. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी की रात्रि से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक चार मास में भगवान विष्णु शयन करते हैं.

नित्य रूप से करें आराधना: पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि चार्तुमास के दौरान भगवान विष्णु की चतुर्भुजी स्वर्ण मूर्ति बनाकर माता लक्ष्मी सहित पूजा करनी चाहिए. इसके अलावा विष्णु पुराण के अनुसार नित्य विष्णु सहस्र नाम पुरुष सूक्त, विष्णु पुराण, विष्णु अर्थवशीष का पाठ और ‘नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मंत्र का जाप और लक्ष्मी हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.

अक्षय फल की प्राप्ति: चातुर्मास व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पीपल वृक्ष की परिक्रमा करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है. संध्या के समय दीपदान का भी महत्व है. पद्‌म पुराण के अनुसार एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही फल चातुर्मास व्रत के अनुष्ठान से प्राप्त हो जाता है. चातुर्मास में स्नान, दान, जप, होम का और देवपूजन किया जाए तो वह अक्षय होता है.

पंचामृत स्नान: चातुर्मास व्रत के दौरान भगवान विष्णु का नित्य पंचामृत से स्नान तुलसी मंजरी अर्पण करने से घर परिवार में सुख समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है. आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक भगवान विष्णु और और शिव की एक लाख प्रदक्षिणा लक्ष तुलसी लक्ष बिल्वपत्र अर्पण और लक्ष दीपदान की अवर्णनीय महिमा है.

चातुर्मास के अलग-अलग मास कुछ कार्य नहीं करने चाहिए:

श्रावण मास में हरी सब्जी नहीं खानी चाहिए, बल्कि हरी सब्जी का दान करना चाहिए.

भाद्रपद मास में दही नहीं खाना चाहिए और दही का दान करना चाहिए.

अश्विन मास में दूध नहीं पीना चाहिए और दूध का दान करना चाहिए.

कार्तिक मास में घी और दाल नहीं खाना चाहिए, बल्कि घी और दाल का दान करना श्रेष्ठ रहता है.

उपवास के समय एक धान खाना चाहिए और केर सांगरी, दानामैथी की सब्जी ही खानी चाहिए. जमीन में उगी हुई सब्जी से परहेज करना चाहिए.

चार्तुमास के चार माह के दौरान सूर्यास्त से पूर्व भोजन करना चाहिए.

कार्तिक शुक्ला द्वादशी या पूर्णिमा के दिन व्रत का उद्यापन करना चाहिए.

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