मधुहीर राजस्थान
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
सोनार दुर्ग में आज भी मौजूद है जैसलू कुआं
जैसलमेर (सी आर देवपाल म्याजलार)। जिले के सोनार दुर्ग में मौजूद जैसलू कुआं करीब 5 हजार साल से ज्यादा पुराना है। इस कुएं ने सदियों से जैसलमेर के बाशिंदों की प्यास बुझाई है। इसकी खासियत यह है कि इसमें कभी भी पानी खत्म नहीं होता। बताया जाता है कि साल 1965 के बाद से इस कुएं को बंद कर दिया गया, लेकिन कहते हैं आज भी इस कुएं में पानी है।जैसलमेर के इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा के अनुसार प्राचीन काल में मथुरा से द्वारिका जाने का रास्ता जैसलमेर से होकर निकलता था। एक बार भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन इसी रास्ते से द्वारिका जा रहे थे। जैसलमेर की इस त्रिकूट पहाड़ी पर जहां सोनार दुर्ग बना हुआ है कुछ देर विश्राम करने के लिए रुके। इस दौरान अर्जुन को प्यास लगी और आसपास कहीं पानी नहीं था। तब श्रीकृष्ण भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से यहां पर कुआं खोद दिया और अर्जुन की प्यास बुझाई।मथुरा से द्वारिका जाते समय श्रीकृष्ण ने चलाया था सुदर्शन शर्मा ने बताया कि मेहता अजीत ने अपने भाटी नामे में लिखा कि एक शिलालेख पर यह भविष्यवाणी लिखी थी कि जैसल नाम का जदुपति यदुवंश में एक थाय किणी काल के मध्य में इण था रहसी आय इसका तात्पर्य यह है कि जैसल नाम का राजा यहां आकर अपनी राजधानी बनाएगा। ऐसा ही हुआ। इस त्रिकूट गढ़ पर महारावल जैसल ने संवत 1212 में सोनार दुर्ग की नींव रखी और विशाल दुर्ग बनाया। उन्हें पहाड़ी पर पहले से ही स्थित कुआं मिल गया।इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन समय में पहले पानी की व्यवस्था देखी जाती और उसके बाद बस्ती बसाई जाती थी। जैसलू कुएं के बारे में विभिन्न तारीखों व शिलालेखों में यही लिखा है कि श्रीकृष्ण ने अपने मित्र अर्जुन की प्यास बुझाने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से इसे खोदा था। यह करीब 5 हजार साल से भी अधिक पुरानी घटना है। इसके बाद महारावल जैसल ने इस त्रिकूट पहाड़ी पर सोनार दुर्ग का निर्माण करवाया था।
1962 में ट्यूबवेल से मिला मीठा पानी
जानकार बताते हैं की 1962 में संयुक्त राष्ट्र के यूएनडीपी (United Nations Development Programme) के तहत जिले में कई जगह ट्यूबवेल खुदवाए गए। उनमें से डाबला गांव में ट्यूबवेल खुदवाया गया जिसमे मीठा पानी निकला। सोनार किले पर GLR का निर्माण हुआ और डाबला का मीठा पानी मिलने लगा जिससे इस कुएं के पानी का उपयोग लगभग बंद सा हो गया।महाभारत काल में सरस्वती नदी का भी वर्णन है। बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने त्रिकूट गढ़ पर अपने सुदर्शन चक्र से जैसलू कुएं को खोदा था तो इसमें सरस्वती नदी का पानी निकला था। जैसलमेर में सरस्वती नदी के बहाव क्षेत्र को तलाश करने के लिए अभी भी कई विशेषज्ञ जुटे हुए हैं। कई प्रमाण ऐसे मिल चुके हैं जिससे यह साबित हो चुका है कि सरस्वती नदी इसी इलाके से बहती थी।
1965 तक मिलता था पीने का पानी
पानी की कीमत जैसलमेर के बुजुर्गों अच्छे से जानते हैं। यहां बारिश नहीं होती थी। ऐसे में हमेशा पानी का संकट रहता था। प्राचीन काल में सोनार किले के बाशिंदे जैसलू कुएं से और शहरवासी गड़ीसर तालाब से अपनी प्यास बुझाते थे। इतिहासकारों के अनुसार 1965 तक यह कुंआ चालू स्थिति में था। जैसलमेर में बारिश की कमी के चलते हमेशा पानी की कमी रहती थी। इस वजह से हर गांव व शहर में प्राचीन बेरियां व कुएं मौजूद हैं। इनकी बनावट ऐसी है कि ये सब तालाबों के आसपास बने हुए हैं। तालाब में आने वाला बारिश का पानी ही इन बेरियों व कुओं में पहुंच जाता था और यहां के लोग सालभर तक उस पानी का उपयोग करते थे।
