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राजस्थान में जिलों का ‘नया अध्याय’

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संजय सिंह चौहान

भजनलाल सरकार का बड़ा फैसला: राजस्थान में जिलों का पुनर्गठन- कारण और विपक्ष के तर्क

देश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में शनिवार को मंत्रिमण्डल की बैठक में सुशासन और समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण फैसले किए। बैठक में पिछली सरकार के समय में गठित जिलों और संभागों का पुन: निर्धारण किया है, जिसके बाद अब प्रदेश में कुल 7 संभाग और 41 जिले होंगे। वर्तमान सरकार का कहना है कि पूर्ववर्ती सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी वर्ष में प्रदेश में 17 नवीन जिले एवं 3 नवीन संभाग बनाने का निर्णय लिया जो पूरी तरह से राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया। इसमें वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, प्रशासनिक आवश्यकता, कानून व्यवस्था, सांस्कृतिक सामंजस्य आदि किसी भी महत्वपूर्ण बिन्दु को ध्यान में नहीं रखा गया। नए जिलों के लिए पिछली सरकार ने कार्यालयों में न तो आवश्यक पद सृजित किए और न ही कार्यालय भवन बनवाए। बजट एवं अन्य सुविधायें भी उपलब्ध नहीं कराई गई।
सरकार का तर्क है कि हमने पिछली सरकार के इस अविवेकपूर्ण निर्णय की समीक्षा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक मंत्रिमण्डलीय उप-समिति और इसके सहयोग के लिए सेवानिवृत्त आईएएस डॉ. ललित के. पंवार की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया। विशेषज्ञ समिति द्वारा नवगठित जिलों एवं संभागों के पुनर्निर्धारण के संबंध में तैयार की गई रिपोर्ट एवं सिफारिशें मंत्रिमण्डलीय उप-समिति के समक्ष प्रस्तुत की गई। समिति द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों पर विचार करते हुए नए सृजित जिलों में से 9 जिलों अनूपगढ़, दूदू, गंगापुरसिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, केकड़ी, नीम का थाना, सांचौर व शाहपुरा तथा नवसृजित 3 संभागों बांसवाड़ा, पाली, सीकर को नहीं रखने का निर्णय मंत्रिमण्डल द्वारा लिया। आचार संहिता से ठीक पहले घोषित 3 नए जिलों मालपुरा, सुजानगढ़ और कुचामन सिटी को भी निरस्त करने का निर्णय राज्य मंत्रिमण्डल ने लिया।
बैठक में निर्णय के बाद अब राजस्थान में कुल 7 संभाग एवं 41 जिले हो जाएंगे। यथावत रखे गए 8 नए जिलों फलौदी, बालोतरा, कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन और सलूम्बर में प्रशासनिक ढांचा तैयार करने के लिए राज्य सरकार सभी जरूरी वित्तीय संसाधन एवं अन्य सुविधाएं मुहैया कराएगी। इससे इन नए जिलों में रहने वाले आमजन को इन जिलों के गठन का लाभ वास्तविक रूप में मिल सकेगा। उन्होंने बताया कि अब जिला परिषदों, पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों का भी पुनर्गठन किया जाएगा।
सरकार के इस फैसले के बाद अब राज्य में 41 जिले ही रह जाएंगे। वहीं 10 संभाग की जगह 7 संभाग अस्तित्व में रहेंगे। मंत्री लेवल कमेटी ने इसकी रिपोर्ट दी थी। मंत्रियों की कमेटी ने भी ललित के पंवार कमेटी की सिफारिश को आधार बनाकर मापदंडों पर खरा नहीं उतरने पर जिले कैंसिल करने सिफारिश की। इसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। जनगणना को देखते हुए 31 दिसंबर से पहले यह फैसला करना जरूरी था। सरकार अगले सप्ताह जिलों के नए सिरे से सीमांकन पर नोटिफिकेशन जारी करेगी। 9 जिलों से अब कलेक्टर एसपी और जिला स्तरीय अफसर हटेंगे, इन जिलों में बने हुए जिला स्तरीय पद भी खत्म हो जाएंगे।
वहीं कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने कहा कि चुनाव से पहले नए जिले और संभाग बनाए गए थे वह व्यवहारिक नहीं थे। वित्तीय संसाधन और जनसंख्या के पहलुओं को अनदेखा किया गया। अनेक जिले ऐसे थे, जिनमें 6-7 तहसीलें नहीं थी। इतने जिलों की आवश्यकता होती तो इसका परीक्षण किया जाता। जोगाराम ने कहा कि न तो इसके लिए कोई पद सृजिए किए, न ही कोई कार्यालय भवन की व्यवस्था की गई। जितने जिले बने, उसमें 18 विभागों में पद सृजन की कोशिश की गई। ये जिले राजस्थान पर अनावश्यक भार डाल रहे हैं। रीव्यू के लिए बनी कमेटी ने पाया कि इन जिलों की उपयोगिता नहीं है।
सरकार के इस फैसले को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अविवेकशील बताया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों का गठन जनता की मांग और प्रशासनिक जरूरतों के आधार पर हुआ था। उन्होंने बताया कि 21 मार्च 2022 को वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी, जिसने सैकड़ों प्रतिवेदन प्राप्त कर अपनी रिपोर्ट तैयार की। इन्हीं सिफारिशों के आधार पर नए जिलों का गठन किया गया था। गहलोत ने कहा कि राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन यहां प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन कभी उस अनुपात में नहीं हुआ, जैसे अन्य राज्यों में हुआ। उन्होंने उदाहरण दिया कि मध्य प्रदेश, जो राजस्थान से छोटा है, में 53 जिले हैं जबकि राजस्थान में यह संख्या काफी कम थी।
साथ ही गहलोत ने कहा कि भजनलाल सरकार ने ये फैसला लेने में 1 साल लगा दिया, इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि इस काम को लेकर उनके मन में कितना कंफ्यूजन रहा। हमनें 3 संभाग बनाए थे तो कुछ सोच-समझकर बनाए थे, मैं नहीं जानता कि यह फैसला क्या सोच-समझकर लिया गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने छोटे जिलों के अनेक फायदे गिनाए। उन्होंने कहा कि छोटे जिलों की आवश्यकता और उनकी उपयोगिता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि नए जिलों के बनने से औसत आबादी 35.42 लाख से घटकर 15.35 लाख हो गई थी। वहीं, औसत क्षेत्रफल 12,147 वर्ग किमी से घटकर 5,268 वर्ग किमी हो गया था। उन्होंने कहा कि छोटी प्रशासनिक इकाइयों से शासन-प्रशासन की पहुंच बेहतर होती है, कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू किया जा सकता है, और सरकारी योजनाओं की डिलीवरी अधिक प्रभावी होती है।
साथ ही उन्होंने भाजपा सरकार के दिए तर्क को भी खारिज किया। उनके अनुसार जिले के आकार पर दिए तर्क में कहा कि कम आबादी या छोटे आकार वाले जिले अन्य राज्यों में भी हैं। उदाहरणस्वरूप, गुजरात का डांग (2.29 लाख), हरियाणा का पंचकुला (5.59 लाख), और पंजाब का मलेरकोटला (4.30 लाख)। वही विधानसभा क्षेत्र पर दिए तर्क पर कहा कि प्रतापगढ़ जिले में केवल दो विधानसभा क्षेत्र हैं, फिर भी भाजपा सरकार ने उसे बनाए रखा है। और जहां तक दूरी तर्क था उस पर उन्होंने कहा कि डीग की भरतपुर से दूरी 38 किमी है, जिसे बरकरार रखा गया है। जबकि सांचौर से जालोर (135 किमी) और अनूपगढ़ से गंगानगर (125 किमी) होने के बावजूद उन जिलों को खत्म कर दिया गया।
गहलोत ने भाजपा का यह फैसला राजनीति से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने केवल जिलों की घोषणा नहीं की थी, बल्कि हर नए जिले में कलेक्टर, एसपी समेत जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति और बजट आवंटन भी किया था। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने एक झटके में जनता की जरूरतों और प्रशासनिक सुधारों को खत्म कर दिया है। गहलोत ने कहा कि यह फैसला जनता की सुविधा के बजाय राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों को मिटाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया है।
(यह लेखक के निजी विचार है।)
वहीं, अशोक गहलोत ने भाजपा सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा करते हुए इसे जनविरोधी और अदूरदर्शी बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएगी और जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी किया जाएगा। उन्होंने इस फैसले को राज्य के विकास और प्रशासनिक सुधार के खिलाफ बताया है।
तथा कांग्रेस नेता डोटासरा ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने जनता की मांग पर रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी, जिसने इन जिलों को बनाने की सिफारिश की थी। उन्होंने सवाल उठाया कि भाजपा सरकार ने इन सिफारिशों को क्यों दरकिनार किया और आनन-फानन में जिलों को खत्म करने का निर्णय क्यों लिया। डोटासरा ने डबल इंजन सरकार पर निशाना साधा। कहा कि ऐसा जन विरोधी निर्णय लिया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि 12 महीनों में भाजपा सरकार ने कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया, केवल कांग्रेस सरकार को गाली देने का काम किया है।
उन्होंने कहा कि हम जनता के साथ आंदोलन करेंगे। डोटासरा ने कहा कि कांग्रेस इस निर्णय को वापस लेने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि यह फैसला जनता के हितों के खिलाफ है और कांग्रेस इसे बर्दाश्त नहीं करेगी।

(यह लेखक के निजी विचार है।)

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