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राजपाठ त्याग कर संत पीपा जी ने सनातन धर्म की अलख जगाई

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12 अप्रेल को पीपा जयन्ती पर विशेष

लेखक: मिश्रीलाल पंवार

राजस्थान के झालावाड़ से थोड़ी दूर गागरोन गढ़ नाम का एक सम्रद्धशाली नगर था। करीब सात सौ वर्ष पूर्व वहां नरेश कड़वा राव खिंची राज करते थे। राजा कड़वा राव खिंची दानवीर तथा धर्मार्थ प्रवर्ती के कुशल साशक थे। आदि देवी माता भगवती के परम भक्त थे। साधु संतों की सेवा में सदैव तत्पर रहते। उनकी पत्नी का नाम “लक्ष्मीवती ” था। वे भी पति की भांति धार्मिक संस्कारों वाली महिला थी।
एक बार रानी की तबीयत बिगड़ी। राज्य वैद्य ने जांच के बाद बताया कि महारानी जी गर्भ से है। वैद्य राज की बात सुनकर पूरे महल में खुशियां छा गई। नौ माह बाद चैत्रीय पूर्णिमा को शंख बजाने लगे। मन्दिरों ढोल, नगाड़े और घंटियां भी बज उठी। देवतागण आकाश मार्ग में पुष्पों की वर्षा करने लगे।
अचानक ही महल से एक शिशु के रोने का स्वर सुनाई दिया। पता चला महारानी जी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया है। देवतागणों ने पुष्प वर्षा कर नवजात शिशु का स्वागत किया। सूखे कुएं और तालाब मीठे पानी से लबालब हो उठे। मुरझाए पेड़ पौधे खिल उठे। पूरे गागरोन वासियों में खुशी की लहर दौड़ गई। घर घर दीपक जलाए गए। महाराजा ने दास दासियों को उपहार देने के लिए खजाना खोल दिया। दाईयों ने बताया कि इतना तेजस्वी और सुंदर शिशु हमने आज तक नहीं देखा। राज पंडितों ने ज्योतिष शास्त्रों का अध्ययन कर राजकुमार का नाम प्रताप सिंह रखने की सलाह दी। राज ज्योतिषी के बताए अनुसार विधि विधान से राज कुमार का नामकरण किया गया। इस मौके देश भर के क्षत्रिय राजाओं को आमंत्रित किया गया।क्षत्रिय कुल के राजाओं ने शिशु को हीरे मोती से जड़े उपहार भेंट कर शुभकामनाएं दी।ज्योतिषियों ने बताया कि राजकुमार संसार में आपका नाम रोशन करेंगे।
राजकुमार प्रताप सिंह बचपन से ही तेज तर्रार थे। उच्च राजसी शिक्षा-दीक्षा के साथ इनकी रुचि आध्यात्म की ओर भी थी। बचपन से ही साहित्य व कला प्रेमी थे।अपनी कुलदेवी में गहरी आस्था थी। वे मां भगवती से प्रत्यक्ष बातें करते थे। युद्ध कोशल में उनका कोई जवाब नहीं था।
इस प्रकार धीरे धीरे समय गुजरता रहा।
राजकुमार युवा हुए तो उनके लिए रिस्ते आने लगे। अनेक राजाओं ने अपनी कन्याओं के वर के रूप में प्रतापसिंह को पसंद कर लिया। इस प्रकार 11 राजकुमारियां उनकी जीवन संगिनी बनी।
उन्हीं दिनों युवराज प्रताप सिंह किसी समारोह में भाग लेने टोडारासिह नगर गए। वहां हर तरफ प्रताप सिंह की चर्चा होने लगी। प्रताप सिंह को कौई एक बार देख लेता तो उन पर से नजरें हटने का नाम ही नहीं लेती। उनके चेहरे पर सूर्य सा तेज और चन्द्रमा जैसी शीतल आभा दिखाई देती। चलते थे तो लगता था सिंह चला आ रहा है।टोडारायसिंह के नरेश डूंगरसिह की एक पुत्री थी। जिसका नाम पद्मावती था। पद्मावती धार्मिक संस्कारों वाली कन्या थी। टोडारायसिंह के नरेश डूंगरसिह ने प्रताप सिंह को देखा तो मन ही मन सोचने लगे कि उनकी लाडली बिटिया के लिए प्रताप सिंह से बढ़कर कोई दूसरा वर नहीं मिल सकता। इधर शहर भ्रमण के दौरान नगरवासियों ने राजकुमार प्रताप सिंह को देखा तो उन्ही की चर्चा होने लगी। धीरे धीरे दासियों के द्वारा यह बात राजकुमारी पद्मावती तक पहुंच गई। दूसरे ही दिन राजकुमारी पद्मावती ने भी समारोह में प्रताप सिंह को देखा तो देखती रह गई। वह मन ही मन राजकुमार प्रताप सिंह को अपना वर मान बेठी।
कुछ दिनों के बाद टोडा रायसिंह नगर के नरेश डूंगरसिह ने गढगागरोन के महाराजा कड़वा राव को रिस्ते का संदेश भेजा। महाराजा कड़वा राव ने भी सुन रखा था कि टोडारायसिंह के नरेश डूंगरसिह की पुत्री पद्मावती अत्यंत ही सुंदर, सुशील व धर्मपरायण कन्या है। कुछ औपचारिक व्यवहार के बाद प्रताप सिंह का पद्मावती का लग्न कर दिया गया।
महाराजा प्रताप सिंह अपनी सभी रानियों से समान रूप से स्नेह रखते थे। मगर सीता से विशेष स्नेह था क्योंकि महारानी सीता धर्म परायण तथा पतिव्रता नारी थी। उन दिनों गागरोनगढ में हर तरफ खुशियां छाई हुई थी।मगर यह खुशियां अधिक दिन तक नहीं रह सकी। एक दिन राजा कड़वा राव का अचानक ही निधन हो गया। हर तरफ मातम छा गया। उस समय राजकुमार प्रताप सिंह की उम्र मात्र 20 वर्ष की थी । सभी राजदरबारियों ने सभा कर जेष्ठ पुत्र प्रताप सिंह के राज्याभिषेक करने का निर्णय ले लिया।
महाराजा कड़वा राव के देहांत के बाद संवत 1400 में युवराज प्रताप सिंह का गागरोन के राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ। राजपाठ संभालने के कुछ ही समय में उनकी एक कुशल शासक के रूप में पहचान बन गई।
उनके राज काल में गागरोन किला एक समृद्ध रियासत बन चुका था। इधर मालवा के मुस्लिम शासकों की बुरी नजर इस पर पड़ी। वे गागरोनगढ पर फतह करने की योजनाएं बनाने लगे।
मुस्लिम शासकों ने गागरोन जीतने की मंशा से हमला किया तो प्रताप सिंह ने उनकी सेना को मुंह तोड जवाब ही नहीं दिया बल्कि खदेड़ खदेड़ कर मारा। फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज व लल्लन पठान जैसे योद्धाओं को पराजित कर पूरे भारतवर्ष में अपनी वीरता का लोहा मनवाया। बाद में मुस्लिम शासकों के मन में प्रताप सिंह के नाम का ऐसा खौफ बैठा कि पलट कर गागरोन की तरफ देखा तक नहीं। कुछ समय बाद महाराजा प्रताप सिंह ने संसारिक राजपाठ तथा संसारिक मोह-माया का त्याग कर दिया। पति के साथ ही सबसे छोटी रानी पद्मावती ने भी संन्यास ले लिया। जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने प्रताप सिंह को पीपा तथा पद्मावती को सीता नाम प्रदान किया। जगद्गुरु रामानंदाचार्य से दीक्षा लेकर दोनों जगत कल्याण के लिए देशाटन पर निकल पड़े। भारतभर का भ्रमण करते लोगों में धर्म की अलख जगाई।

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