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फैसले पर बढ़ता जनाक्रोश, हाईवे जाम

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नौ जिलो और तीनों संभागों की खत्म होने की अधिसूचना जारी

संजय सिंह चौहान

प्रदेश में जिलों को लेकर माहौल गरमा गया है। गहलोत सरकार ने मार्च 2023 में प्रदेश में 19 नए जिले और 3 संभाग बनाने की घोषणा की थी। भजनलाल सरकार ने इनमें से 9 जिलों और तीन संभागों को समाप्त करने का फैसला लिया। इस फैसले का हर ओर विरोध शुरू हो गया है। सरकार के उठाये गए कदम से लोगों की नाराजगी अब सड़कों पर आ गई।
जिलों को बहाल नहीं करने पर कांग्रेस समेत अन्य संगठनों और लोगों ने उग्र आंदोलन की चेतावनी दी। वहीं जो जिले कैंसिल किए हैं उनमें जिला बचाओ या जिला बनाओ संघर्ष समिति बनाकर संघर्ष को हाईवे पर ला दिया है। बीकानेर-श्रीगंगानगर नेशनल हाईवे नंबर 911 पर जाम लगा दिया। नीमकाथाना में टायर जलाकर प्रदर्शन किया। साथ ही आंदोलन उग्र कर ट्रेन रोकने की चेतावनी दी गई। शाहपुरा में बाजार बंद का आह्वान कर अपने विरोध को प्रर्दशित किया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिले खत्म करने के फैसले पर भजनलाल सरकार पर निशाना साधा है। गहलोत ने कहा- हमने पूरी तैयारी के बाद नए जिले बनाए थे। उन्होंने कहा कि छोटे जिलों में सरकारी योजनाओं को अच्छे से लागू किया जा सकता था। पिछले एक साल में सरकार का काम नहीं कर पाने का परसेप्शन बन गया है। प्रदेश के साथ ही बाहर भी लोग पूछ रहे हैं कि सरकार काम क्यों नही कर पा रही है। साथ उन्होंने मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लेकर भी निशाना साधा। गहलोत ने कहा- इनको पहली बार विधायक बनने पर ही मुख्यमंत्री बना दिया गया। हमने भी कहा- इन्हें काम करने का मौका मिलना चाहिए, इसलिए भी हम कम बोलते थे। लेकिन भजनलाल शर्मा ने अपनी पार्टी के दबाव में एक मौका खो दिया।
पूर्व सीएम गहलोत ने कहा कि कई पड़ोसी राज्य जैसे- गुजरात, मध्य प्रदेश जो हमसे छोटे हैं, लेकिन वहां जिलों की संख्या ज्यादा है। एमपी में 51 जिले थे, जिसके बाद दो और जिले बना दिए गए। गहलोत ने कहा- जिलों पर फैसला लेने में एक साल लगा दिया। अगर हमनें इतना ही गलत फैसला लिया था तो इन्हें आते ही जिले खत्म करने चाहिए थे।
गहलोत ने जिलों की कमेटी के चेयरमैन पर भी आरोप लगाते हुए कहा- वह तो बीजेपी जॉइन कर चुका है। इसका मतलब यह है कि जो बीजेपी पार्टी ने तय किया, उस अधिकारी के माध्यम से वो करवाया गया है। गहलोत बोले- मैंने सुना कि कुछ रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ने भी कहा कि हमारा फैसला व्यवहारिक नहीं था। पता नहीं उन्हें किस बात का डर है। हो सकता है कोई लोभ-लालच रहा हो। अभी भी सरकार में कई पद खाली है। कुछ इच्छा शायद रह गई होगी। हमने भी कई चांस दिए हैं, इन अधिकारियों को। इनके मंत्री इस स्थिति में नहीं थे कि वो सरकार के निर्णय का बचाव कर सके। पब्लिक में रिएक्शन नहीं हो, इससे बचने के लिए आपने रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को आगे किया।
सरकार के निर्णय की पैरवी करते हुए शिक्षामंत्री मदन दिलावर ने कहा कि कोई भी जिला बनाते समय कुछ मापदंड होते हैं,उनकी पालना होना जरूरी है। अब ऐसे तो होता नहीं कि मनमाने तरीके से बना लें। जिस काम में जनता का अहित होता है उसे नहीं करना चाहिए। एक विधानसभा क्षेत्र का कोई जिला होता है क्या। हिंदुस्तान में हमने देखा है कि एवरेज एक जिले की 23 लाख जनसंख्या होनी चाहिए। यहां पर तो 2-2,3-3 लाख आबादी में जिले बना दिए। इसलिए हमने उनको निरस्त किया है। जब जनसंख्या के हिसाब से लगेगा तो वापस मंत्रिमंडल निर्णय करके बना देगा।
राज्य के नौ जिलों को समाप्त करने के फैसले के विरोध में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। उल्लेखनीय है कि राज्य मंत्रिमंडल की बैठक शनिवार को हुई थी जिसमें अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राज्य की पूर्ववर्ती सरकार द्वारा गठित नौ जिलों व तीन नए संभागों को भी खत्म करने का फैसला किया गया। हालांकि आठ नए जिलों को बरकरार रखा गया है। राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 17 नये जिले व तीन नये संभाग बनाने की अधिसूचना जारी की थी। इसके साथ ही तीन नये जिलों की घोषणा की थी लेकिन उसकी अधिसूचना जारी नहीं हुई थी। मंत्रिमंडल की बैठक में नौ जिलों अनूपगढ़, दूदू, गंगापुरसिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, केकड़ी, नीम का थाना, सांचौर व शाहपुरा को निरस्त करने का निर्णय लिया गया था।
राजस्थान सरकार के जिलों को खत्म करने के फैसले ने आम जनता में भारी आक्रोश पैदा किया है। लोगों का मानना है कि यह फैसला उनके हितों के विरुद्ध है और इससे उनकी सुविधाओं पर असर पड़ेगा। आम लोगों को इस बात की चिंता है कि सरकार के इस फैसले से प्रशासनिक कार्यों में दिक्कतें आएंगी और लोगों को अपने कामों के लिए अधिक दूर जाना पड़ेगा। तथा साथ ही जिलों के खत्म होने से रोजगार के अवसर कम होंगे और लोगों को अपनी आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। इस फैसले से सामाजिक असंतुलन पैदा हो सकता है और लोगों के बीच मतभेद बढ़ सकते हैं। आम जनता ने सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है ताकि लोगों के हितों की रक्षा की जा सके। उन्होंने कहा है कि सरकार को लोगों की चिंताओं को समझना चाहिए और उनके हितों के अनुसार फैसला लेना चाहिए।
लोगों का लगता है कि गहलोत सरकार के नए जिलों के गठन के फैसले ने राज्य के विकास की दिशा में एक नए युग की शुरूआत की थी यह फैसला न केवल प्रशासनिक सुविधा को बढ़ावा देगा, बल्कि यह नए अवसरों की भरमार भी लेकर आएगा। उनके अनुसार नए जिलों के गठन से राज्य के विकास में तेजी आएगी। यह फैसला राज्य के दूर-दराज के क्षेत्रों में विकास की गति को बढ़ावा देगा और लोगों को अपने क्षेत्र में ही रोजगार के अवसर प्रदान करेगा।
साथ ही नए जिलों में अवसरों की भरमार होगी। यहाँ पर नए उद्योगों की स्थापना, नए शिक्षण संस्थानों की स्थापना, और नए स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना जैसे कई अवसर उपलब्ध होंगे। इसके अलावा, नए जिलों के गठन से राज्य की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। यह फैसला राज्य के राजस्व में वृद्धि करेगा और लोगों की आय में भी वृद्धि करेगा। हालांकि, नए जिलों के गठन के साथ-साथ कई चुनौतियाँ भी आएंगी। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार को विशेष प्रयास करने होंगे।
जनता अपना अमूल्य वोट देकर एकदम ठगा सा महसूस करने लगी है। साथ वह चाहती है कि सरकार इन मुद्दों से ऊपर उठकर लोगों का राहत प्रदान करने के अवसर पैदा करे। राजनीतिक हवा को बढ़ावा देने से केवल अपनी रोटियां सेक सकते हैं जनता को मरहम लगाकर उनके विश्वास को बनाए रखने में आगे आएं। साथ ही सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार कर लोगों की भावना का आदर करें।
(यह लेखक के निजी विचार है।)

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