बहादुर सिंह चौहान
(संपादक)
अबूझ सावा यानी अक्षय तृतीया अर्थात यह ऐसा सावा है जिनमें किसी पंडित या किसी से सलाह मशविरा करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस दिन कोई भी मांगलिक कार्य बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है। अक्षय तृतीया का अर्थ है कि वह तृतीया तिथि, जिसका कभी क्षय न हो….अर्थात आप अक्षय तृतीया के दिन जो भी शुभ कार्य करते है वह शुभ ही होता है। धनतेरस और दिवाली के बाद साल के सबसे बड़े खरीददारी और शुभ कार्यों के लिए स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त अक्षय तृतीया यानी आखातीज का पर्व शुक्रवार को रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र, सुकर्मा सहित अन्य योग—संयोगों में मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु और कुबेर देव की पूजा की जाती है। वहीं इस दिन परशुराम जयंती भी है। ऐसे में जोधपुर समेत प्रदेशभर में परशुराम जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है। इस दिन झांकियां सजाई जाती है तथा विभिन्न मार्गों से होते हुए भ्रमण करते है। तथा इस दिन बड़ी संख्या में लोग इस जयंती पर एकत्रित होते है तथा परशुराम जयंती को धूमधाम से मनाते है। मान्यताओं के अनुसार यह दिन हर किसी के जीवन में सौभाग्य और सफलता लाता है। अक्षय तृतीया हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दिन विभिन्न शुभ कार्यों को करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। संस्कृत में ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ शाश्वत होता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस दिन कोई भी व्रत, गरीबों को दान और प्रार्थनाएं शुभ फल प्रदान करेंगी। अक्षय तृतीया का दिन मां लक्ष्मी की पूजा को समर्पित है। इस दिन सोना-चांदी, वाहन की खरीदारी करने से आर्थिक संकट दूर होता है। वहीं किसानों के लिए भी आखातीज यानी अक्षय तृतीया का बड़ा महत्व है। इस दिन हर किसान अपने-अपने खेतों में नए साल की खेती-बाड़ी का शुभारंभ करते हैं और इसके लिए किसानों का यह तीन दिवसीय आखातीज का त्योंहार आमतौर पर हाळी अमावस्या से ही शुरू हो जाता है। इस दिन से किसान कृषि यंत्रों की पूजा से लेकर खेती के लिए शगुन लेने का काम भी शुरू कर देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन दान करने पर आपके अर्जित पुण्य आपके साथ हमेशा बने रहते हैं। अर्थात आपकी अर्जित धन-संपत्ति का ह्रास नहीं होता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। प्रदेश में इस दिन हजारों की संख्या में विवाह होते हैं, लेकिन इस बार दस मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया पर विवाह का मुहुर्त नहीं है। पंडितों के अनुसार ग्रहों के प्रतिकूलता के कारण बरसों बाद इस तरह का संयोग आया है, जिसमें अक्षय तृतीया पर विवाह का शुभ मुहुर्त नहीं है। इस बार शुक्र ग्रह अस्त होने से विवाह के मुहुर्त को शुभ नहीं बता रहे। पंडितों के अनुसार विवाह महुर्त 5 जुलाई के बाद ही है। प्रदेश के हर गांव व शहर में शादियों की धूम रहती है, लेकिन इस बार मुहुर्त नहीं होने से रौनक फीकी ही नजर आएगी।
