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ज्ञान के साथ आचार व संस्कार का भी हो विकास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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मेहकर से हिवरा आश्रम पधारे शांतिदूत, जनता ने किया अभिनंदन
प्रातः 13 कि.मी. तो सायं 5 कि.मी. का अखण्ड परिव्राजक ने किया विहार
हिवरा आश्रम के विवेकनंद आश्रम की ओर आचार्यश्री को समर्पित किया गया अभिनंदन पत्र
लोगों ने विभिन्न रूपों में दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति

मधुहीर राजस्थान

हिवरा आश्रम, बुलढाणा (महाराष्ट्र) रमेश भट्ट। आर्हत वाङ्मय के गूढ़ रहस्यों की सरल व्याख्या कर जन मानस के अज्ञान अंधकार को हरने वाले धर्म दिवाकर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज हिवरा आश्रम में पदार्पण हुआ। जाति, धर्म, संप्रदाय से इतर जनता को मानवता, करूणा, शांति का संदेश देते हुए आचार्य श्री का यह विदर्भ क्षेत्र का प्रवास आमजन के लिए मानों स्वर्णिम समय बना हुआ है। प्रतिदिन एक-एक गांव में पधार कर शांतिदूत लोगों को ईमानदारी, नशा मुक्ति की प्रेरणा दे रहे है। इसी क्रम में आज प्रातः शांतिदूत श्री महाश्रमण ने मेहकर से मंगल विहार किया। विहार के दौरान आज हल्की बादलवाही होने से सूर्य का ताप राहगीरों को कम प्रतीत हो रहा था। आचार्य श्री लगभग 13 किमी का विहार कर हिवरा आश्रम पधारे जहां विवेकानंद आश्रम एवं गांव वासियों ने आगवानी कर महाराष्ट्र के पारंपरिक तरीके से गुरुदेव का स्वागत किया। विवेकानंद विद्या मंदिर जूनियर कॉलेज में आचार्य श्री का प्रवास हुआ।

मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा आदमी के जीवन में ज्ञान बहुत महत्त्व है। ज्ञान के अभाव में एक अंधकार-सा रहता है। इसलिए ज्ञान एक प्रकाश है। जैन दर्शन में ज्ञानावरणीय की बात आती है। ऐसा कर्म जो ज्ञान को आवृत करने वाला होता है। आदमी के भीतर अनंत ज्ञान सन्निहित हैं, जिसका कोई आरपार नहीं है। कोई-कोई मनुष्य साधना के द्वारा सर्वज्ञ हो जाते हैं। उनका पूरा ज्ञानावरणीय कर्म नष्ट हो जाता है और पूरा ज्ञान सूर्य के समान उदित हो जाता है।

विद्या संस्थान में अध्यापक, विद्यार्थी हों, पुस्तक का सहयोग तथा स्थान मिल जाए, फिर ज्ञान को प्राप्त करने का अभ्यास हो तो विद्यार्थी के भीतर ज्ञान का प्रकाश आ सकता है। ज्ञान का दीपक जल जाए तो अच्छी बात होती है। ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना, मानों सरस्वती की आराधना-साधना करना भी एक प्रकार की तपस्या हो सकती है। अध्यापक भी पहले खुद पढ़ते होंगे, फिर पढ़ाते होंगे। विद्यार्थी तपस्या करने वाले होते हैं। अध्यापक और विद्यार्थी दोनों ज्ञान की आराधना करने वाले होते हैं। अध्यापकों का ज्ञान तेजस्वी होगा तो विद्यार्थियों का ज्ञान भी तेजस्वी हो सकता है। प्रतिभावान विद्यार्थी अपनी प्रतिभा से नए-नए ज्ञान को खोज सकते हैं। ज्ञान के साथ आचार, संस्कार व व्यवहार भी जीवन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। कोरा ज्ञान अधूरा होता है। ज्ञान के साथ संस्कार भी जुड़ जाए तो परिपूर्णता की बात हो सकती है। विद्यार्थियों में विभिन्न विषयों का ज्ञान बढ़े और उसके साथ आचार का भी विकास हो तो पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण हो सकता है। राजनीति के क्षेत्र में, धर्म के क्षेत्र में, राजनीति में, समाज में विशेष लोग आते हैं। यदि बच्चों में अच्छे संस्कार होंगे तो वे एक दिन महान व्यक्तित्व के रूप में सामने आ सकते हैं।

इसलिए विद्यार्थी के ज्ञान का विकास हो, इसके साथ अहिंसा, संयम, नैतिकता का संस्कार भी ऐसा अपेक्षित माना गया है। ईमानदारी को सर्वोत्तम नीति है। यह सूत्र जीवनगत, आत्मगत, व्यवहारगत, आचरणगत हो जाए तो ज्यादा हितकर हो सकता है। विद्यार्थियों में ईमानदारी का संस्कार आना चाहिए। विद्यार्थी ही कभी आगे जाकर बड़े पदों पर सेवा दे सकते हैं। ज्ञान सम्पन्न व संस्कार सम्मान विद्यार्थी बनते हैं तो समाज व राष्ट्र का कल्याण हो सकता है।

ऐसे आश्रमों में विद्यार्थियों का खूब अच्छा विकास हो, आत्मा व भावों की शुद्धता, भावात्मक शुद्धि आदि का क्रम रहे। यह विवेकानंद आश्रम का स्थान है, जहां इतने विद्यार्थी रहने वाले हैं। आश्रम नाम भी बहुत बढ़िया है। यहां ज्ञानराधना, योग, ध्यान, प्राणायाम, खाद्य संयम आदि साधना के संस्कारों का भी विकास हो, यहां खूब अच्छी धार्मिक-आध्यात्मिक माहौल का विकास हो।

मुनि आलोककुमारजी ने गुरुकुलवास से विहार करने से पूर्व आचार्यश्री से आशीष प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मुनिजी को आशीष प्रदान किया। आचार्यश्री के स्वागत में विवेकानंद आश्रम की ओर मासोतर सोनी ने स्वागत गीत का संगान किया। श्रीमती हेमलताजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री संतोष गोरे ने संस्था का परिचय आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुत किया। आश्रम परिवार द्वारा आचार्यश्री के समक्ष अभिनंदन पत्र प्रस्तुत किया गया। नहार परिवार ने गीत का संगान किया। श्री अधिकार मरलेचा, बालिका भविष्या मरलेचा, श्री सुनील नहार व डॉ अनिल नहार ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।

सांयकाल महातपस्वी आचार्यश्री ने पुनः विहार प्रारम्भ किया और लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर पेनटाकली में स्थित छत्रपति साहू महाराज विद्यालय में पधारे, जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।

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