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फिर नहीं उठा कभी वो, जो नजऱ से गिर गया…

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‘साहित्य संगम’ की गोष्ठी में रचनाकारों ने विविध विषयों पर दी काव्य प्रस्तुति

मधुहीर राजस्थान
जोधपुर। साहित्यिक संस्था ‘साहित्य संगम’ की ओर से रेलवे स्टेशन क्षेत्र स्थित सेठ श्री रघुनाथदास परिहार धर्मशाला के सभागार मे मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन शुक्रवार को किया गया। गोष्ठी में शहर के प्रतिष्ठित रचनाकारों ने मौजूदा दौर की सामाजिक विसंगतियों, इंसानी सोच और भविष्य की चुनौतियों सहित विविध विषयों पर काव्य प्रस्तुति दी।
गोष्ठी में नामवर शाइर हबीब कैफ़ी ने इंसान के नजऱ से गिर जाने वाले मुहावरे को रेखांकित करते गज़़ल ‘फिर नहीं उठा कभी वो नजऱ से गिर गया’, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्यनारायण ने उत्तराखंड की बाढ त्रासदी में खो गए प्यार के एहसास को शब्दों में पिरोते हुए कविता ‘इस बाढ़ में मैं वहां पहुंच गया, जहां-जहां तुम्हारी पगथलियों की थाप थी, अब इस बाढ़ में न तुम हो, न तुम्हारी पगथली’, कवि-आलोचक कौशलनाथ उपाध्याय ने इंसान के भटकाव की चुनौती पर चिंता व्यक्त करते हुए कविता ‘चुनौती यह है कि जो भटके हुए समय में, संसार में, जीवन में या व्यवहार में, कैसे उन्हें फिर फेर लाएंगे’ तथा साहित्य अकेडमी से पुरस्कृत कवि मीठेश निर्मोही ने ‘तुम्हारे लिए’ व ‘रंग-सुगंध’ शीर्षक से कविताएं प्रस्तुत कर प्रेम व प्रकृति का यथार्थ चित्रण किया। गोष्ठी में प्रेम प्रीत से सराबोर करते हुए कवयित्री डॉ सूरज माहेश्वरी ने ‘उसको भी तो नींद नहीं फिर आई है, जिसने आकर मेरी नींद चुराई है’, नवीन पंछी ने ‘आगे नहीं बढ़ सकी हवाएं मेरे आसपास की, तुम्हारे नाम और एहसास से भारी हो गई’, सियासत के पतन पर आदिल अख्तर ने दोहा ‘सियासत ऐसी गिर गई, उसमें नहीं लिहाज़ ढाई आखर प्रेम का, हो गया लव जिहाद’, रंगकर्मी रमेश भाटी ने ‘लो समेट कर जाने लगे तुम उजाला अपना’, गजलकार सैयद मुनव्वर अली ने ‘सियासी भेडिय़ों! थोड़ी बहुत ग़ैरत ज़रूरी है, तवायफ तक किसी मौके पर घुंघरू तोड़ देती है’, पत्रकार सुरेश व्यास ने ‘अब तो हद हो गई राजनीति में भी घसीट कर लाई जाने लगी है माँ’ तथा कुलदीप सिंह भाटी ने ‘घर’ विषय पर सार्थक क्षणिकाएं पेश कर खूब दाद बटोरी।
इसके अलावा रजा मोहम्मद खान ने गजल ‘गिरा न इतना कि मैं फिर नजर उठा न सकूं, तेरे हुजूर में आकर के सिर झुका न सकूं’, युवा कवि बसन्त बूब ने ‘जिस दिन सब प्रश्न सुलझ जाएंगे, खामोशी से हम कितना चिल्लाएंगे’ तथा अशफाक अहमद फौजदार ने ‘यारों मीर ओ गालिब सा कहता कौन है, अच्छी से अच्छी गजलें पढ़ता कौन है’ सुनाकर गोष्ठी को ऊंचाईयां बख्शी।

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