मधुहीर राजस्थान
जोधपुर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के वैज्ञानिकों ने कोशिका के मिशन कंट्रोल सेंटर- सेंट्रोसोम के कार्य तंत्र को समझने में एक बड़ी सफलता हासिल की है। इस शोध से कैंसर और दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के उपचार की नई राहें खुलने की उम्मीद है।
आईआईटी जोधपुर के बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग की सह आचार्य डॉ. प्रियांका सिंह और उनकी टीम ने सेंट्रोसोम की संरचना और उसकी कार्यप्रणाली का अध्ययन करते हुए यह उजागर किया कि यह सूक्ष्म जैविक केंद्र कोशिकाओं के विभाजन और वृद्धि को नियंत्रित करता है। जब यह संतुलन बिगड़ता है, तो कैंसर या माइक्रोसेफली जैसी गंभीर बीमारियां उत्पन्न होती हैं। डॉ. सिंह के अनुसार हम कोशिका की कार्यप्रणाली का सटीक ब्लूप्रिंट समझना चाहते हैं ताकि कैंसर को वहीं रोका जा सके, जहां वह शुरू होता है, और स्वस्थ कोशिकाओं को कोई क्षति न पहुंचे। टीम ने पाया कि पीएलके4 प्रोटीन कोशिका विभाजन का प्रमुख स्विच है, जबकि एसटीआईएल प्रोटीन और बीआरसीए1 ट्यूमर सप्रेसर प्रोटीन के बीच नया संबंध यह दर्शाता है कि कोशिका के भीतर यह प्रणाली स्वयं कैंसर-रोधी भूमिका निभाती है। इसके साथ ही, शोध में यह भी सामने आया कि सीपीएपी प्रोटीन में परिवर्तन (म्यूटेशन) सेंट्रोसोम की संख्या या आकार को प्रभावित करता है, जिससे विकास संबंधी विकार और दुर्लभ बीमारियां जन्म लेती हैं। टीम ने ऐसे रासायनिक यौगिकों की पहचान भी की है जो सेंट्रोसोम की असामान्य संख्या को सामान्य बना सकते हैं यह भविष्य की लक्षित एंटी-कैंसर थेरेपी के लिए एक नई दिशा मानी जा रही है।
यह शोध आईआईटी जोधपुर के रसायनशास्त्र विभाग के डॉ. संदीप मुरारका के सहयोग से किया गया है, जिनकी टीम टैक्सोल जैसी दवाओं के विकल्प के रूप में नए रसायनों का विकास कर रही है। प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि ये यौगिक कम मात्रा में ही कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सक्षम हैं। डॉ. सिंह की प्रयोगशाला वर्तमान में चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के साथ एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित कर रही है ताकि भारत में सेंट्रोसोम-संबंधी दुर्लभ रोगों के प्रारंभिक निदान और अनुवांशिक पैटर्न की पहचान की जा सके।
डॉ. सिंह का कहना है कि सेंट्रोसोम वास्तव में कोशिका का कमांड सेंटर है, दि हम यह समझ लें कि यह कैसे निर्णय लेता है, तो हम बीमारियों के नियमों को फिर से लिख सकते हैं- कैंसर से लेकर दुर्लभ विकास संबंधी विकारों तक। आईआईटी जोधपुर का यह शोध न केवल कोशिका विज्ञान की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, बल्कि ऑन्कोलॉजी, न्यूरोलॉजी और पुनर्जनन चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत की वैज्ञानिक क्षमता को नई ऊंचाई प्रदान करता है।

