मधुहीर राजस्थान
जोधपुर। राजकीय कन्या महाविद्यालय, सूरसागर (जोधपुर) के प्राचार्य , पर्यावरणविद् प्रोफेसर अरुण व्यास ने बताया कि हर साल विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को एक थीम के साथ मनाया जाता है। इस साल की थीम है- ‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता’। हर वर्ष दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
विश्व के पारिस्थितिकी तंत्र खतरें में हैं। पृथ्वी के कुल भूमि क्षेत्र के पांचवें भाग से अधिक अर्थात दो बिलियन हेक्टेयर भूमि डिग्रेड हो गई है जिससे दुनिया की चालीस फीसदी आबादी प्रभावित हुए हैं। यदि भूमि क्षरण अनियंत्रित रहता है तो वैश्विक खाद्य उत्पादकता में बारह फीसदी की कमी आ सकती है और खाद्य कीमतों में अगले पन्द्रह बरस में 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो सकती है। दुनिया भर में भूमि पुनर्स्थापन के माध्यम से पर्यावरणीय क्षरण को रोककर ग्रह की दिशा बदलने की आखिरी उम्मीद वर्तमान पीढ़ी से है। हम जंगल उगा सकते है, गांव और शहर हरे भरे कर सकते हैं। दुनिया भर के दो अरब लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, ऐसे में भूमि क्षरण को रोकना ही होगा।ग्लोबल से लेकर लोकल स्तर पर मरुस्थलीकरण के प्रसार को रोकने और सूखे से निपटने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नवीनतम तकनीकों का उपयोग आज समय की मांग है।
*हिमनदों का पिघलना खतरनाक* प्रो व्यास ने बताया कि वैश्विक तापमान वृद्धि के लंबे दौर में लगातार महासागर तापवृद्धि एवं हिमनदों और बर्फिली चादरों के तीव्र गति से पिघलने के कारण वैश्विक माध्य समुद्र जलस्तर (1993 से उपलब्ध सैटेलाइट रिकॉर्ड में) अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है और 2014 से 2023 की अवधि में इसमें 4.77 मिलीमीटर प्रति वर्ष की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। विश्व की 33 फीसदी जनसंख्या समुद्र तट से 100 किलोमीटर के दायरे में निवास करती है और भारत में भी छः हजार किलोमीटर क्षेत्र में तटीय इलाकों का फैलाव है, प्रोफेसर व्यास ने कहा कि समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से तटीय क्षेत्रों में बसे देश, प्रदेश, शहरों और गांवों की आबादी खतरें के जद में हैं।
*हानिकारक है ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन*
डॉ व्यास के अनुसार औद्योगिक विकास के फलस्वरूप हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन ने पृथ्वी के वायुमंडल को प्रभावित किया है और वायुमंडल में आज कार्बन डाइऑक्साइड की वैश्विक औसत सतही सान्द्रता का स्तर 422 पी पी एम हो गया है। पृथ्वी के औसत तापमान में 1.56 सेंटीग्रेड की वृद्धि पृथ्वी के पर्यावरण पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में घातक प्रभाव डालेगी।
*जलवायु परिवर्तन से वैश्विक संकट*
प्रोफेसर अरुण व्यास ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर अधिकतर प्रवासी प्रजातियों का अस्तित्व संकटग्रस्त हो गया है और पशुओं की करीब 48 फीसदी प्रजातियों की पशु संख्या दर में गिरावट देखी गई है। जैव विविधता पर पर्यावरण प्रदुषण का असर नजर आ रहा है और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हुआ है। जलवायु परिवर्तन ने देश के मौसम में बदलाव किया है, सर्दियों के दिनों में गिरावट आई है, बसंत ऋतु गायब हो गई है और गर्मी में लू के दिनों में बढ़ोतरी से आम जनजीवन प्रभावित हुआ है। 1901 – 1910 के दशक में देश में 244 ज़िलों में कम से कम एक माह असाधारण सूखा पड़ा था और 2011 – 2021 के दशक में ऐसे जिलों की संख्या बढ़कर 660 हो गई थी। जलवायु परिवर्तन ने मानसून के मिजाज को बदल दिया है और बारिश की औसतन मात्रा में आंशिक बदलाव आया है परन्तु वर्षा के दिनों में कमी से खेती के साथ जल संग्रहण भी प्रभावित हुआ है और कम दिनों में अधिक बरसात से बाढ़ की आपदा के खतरे बढ़ रहें है और अधिकतर वर्षा जल रन- आफ से नष्ट हो जाता है।
*भूकम्पी गतिविधियों से बढ़ी आपदाएं*
वैश्विक स्तर पर नव- विवर्तनिकी के कारण विभिन्न प्लेटों के विन्यास में अलग अलग गतियों के कारण इनके रीसेटिंग के फलस्वरूप महाद्वीपों और महासागरों में हलचल मची हुई है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। प्रोफेसर व्यास ने बताया कि देश का करीब 60 फीसदी ज़मीनी क्षेत्र भूकंप प्रभावित है और प्रायद्वीपेतर हिमालय क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों में बढ़ोतरी खतरनाक साबित हो सकती है।
*जनसंख्या वृद्धि से भू संसाधनों पर बढ़ा दबाव*
पृथ्वी पर वर्ष 1850 में जनसंख्या एक अरब थी और आज यह बढ़कर आठ अरब से भी अधिक हो गई है। डॉ व्यास के अनुसार जनसंख्या वृद्धि के कारण भू संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बना है और मांग एवं आपूर्ति में असंतुलन हो गया है। हमें सामुहिक जिम्मेदारी से पृथ्वी के पर्यावरण को स्वच्छ और संरक्षित करने के लिए भू संसाधनों का नीतिगत तरीकों से आवश्यकता के अनुसार दोहन करना चाहिए। हमें जल संरक्षण और अधिकाधिक पौधारोपण कार्य करने के साथ जल, थल और आकाश में प्रदूषण नियंत्रण में सहयोगी भूमिका निर्वाहित करने की जरूरत है। हम आने वाली पीढ़ियों के लिए खूबसूरत पृथ्वी पर खुशहाल जीवन जीने योग्य प्रदुषण मुक्त वातावरण तैयार करें तभी सही मायने में पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता होगी अन्यथा पृथ्वी को चढ़ रहे बुखार की मार से हम बच नहीं पाएंगे।

